होली के रंग में, भंग की तरंग में, रंगों की फुहार, छींटे और बौछार सबको अच्छे लगते हैं! इस क्रम में आज प्रस्तुत हैं -
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bahut badhiya dono kundaliyon...aaj ke blogworld kaa sahi parimaap..
जवाब देंहटाएंवाह वाह होली के रंग भर दिये हैं …………बहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंवाह वाह होली से पहले ही रंग भरी पिचकारी मारने लगे , चिट्ठाकारी पर तो ज्यादा ही रंग पड़ गया , बधाई
जवाब देंहटाएंhmmmmmm bouth he aacha post hai aapka..
जवाब देंहटाएंvisit my blog plz
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मयंक जी कृपया कुंडली में मात्रायें एक बार फिर से गिनें.
जवाब देंहटाएंराइट सर!
जवाब देंहटाएंब्लागिंग का अति भेदतम,
जवाब देंहटाएंसबको दियो बताय।
बहुत सार्थक और सटीक व्यंग..बहुत सुन्दर..आभार
जवाब देंहटाएंसुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap Singh जी!
जवाब देंहटाएंकहीं पर मात्राएँ घट-बढ़ रहीं हैं क्या?
कृपया बताएं कि कहाँ पर ऐसा हुआ है!
९ मार्च २०११ ७:४९ अपराह्न
बहुत लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर् लगी खास कर आप की... कड़वीं कुँडलियाँ, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमैं भी खटीमा आ रहा हूं आपसे कविता सीखने..
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग पर सटीक कुण्डलियाँ हैं ..
जवाब देंहटाएंbahut hee badhiya
जवाब देंहटाएंschchaai byan krti sunder kundliya
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी आज की ब्लॉगिंग पर बहुत ही करारा प्रहार किया है आपने व्यंग्य आधारित कुण्डलियों के माध्यम से|
जवाब देंहटाएंआलोचना बल्कि यूँ कहें समालोचना तो होनी ही चाहिए| लेखकों द्वारा समालोचकों का सम्मान होना चाहिए और समालोचकों को भी हर जगह अपनी स्थिति समान रखनी चाहिए|
एक दूसरा पहलू भी है इस का| मसलन, कुछ लोग नुक्स निकाल तो देते हैं, पर बेनामी रहते हुए और वो भी कभी कभार अतार्किक|
तीसरा पक्ष और भी है एक - नुक्स निकालने वाले कभी कभी सामने वाले का उत्तर सुनने के लिए भी उद्यत नहीं होते|
फिर भी हमें तो उसी कहावत को याद रखना उचित है :-
"निन्दक नियरें राखियै, आँगन कुटी छवाय"
dono hi kundliyan jabardast hain!
जवाब देंहटाएंsachhai yahi he,
Ati sundar.
जवाब देंहटाएं---------
पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
बहुत सुन्दर् लगी
जवाब देंहटाएंइन्हें अगर कड़वी दवाई के रूप में पी लिया जाए,
जवाब देंहटाएंतो टिप्पणियों का स्वास्थ्य सुधर जाएगा! !
सच कितना कडुवा होता है.. आपकी कुंडलियों ने सच का खुलाशा किया सो कडुवी हो गयी.. उम्दा रचना ..
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