नये-नये बिम्ब लिए, साँझ नहीं-भोर नही, पाश्चात्य दीन-हीन, काव्य को दिखाया है। नये-नये बिम्ब लिए, |
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सोमवार, 28 मार्च 2011
"रबड़ छंद भाया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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अच्छी परिभाषा गढ़ी नये छंद की..
जवाब देंहटाएंलचीला छन्द।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर......
जवाब देंहटाएंएकदम सही लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंक्या आपने अपने ब्लॉग से नेविगेशन बार हटाया ?
क्या बात है शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंक्या बात है!
एक दम छल-छल करती रचना।
दो बार गाने के बाद मन भरा। इतना प्रवाह है।
aapki ye rachna bahut rochak pravaah yukt hai.bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
रबड़ छन्द-खूब नाम दिया आपने भी.
जवाब देंहटाएंरबड़ छंद :)
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर काव्य रचना शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंकाया में प्राण नहीं.
जवाब देंहटाएंपंक्तियाँ समान नहीं,
साधू है ब्रह्मलीन,
नवयुग की माया है।
नये-नये बिम्ब लिए,
नया छंद आया है।।
बहुत ही सुन्दर काव्य रचना।
वास्तव में प्रवाह पूर्ण काव्य ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
---रबड छंद कोई नया नाम नहीं है---निराला जी द्वारा अतुकान्त छंद का प्रयोग किये जाने पर इसे रबड-छंद व केंचुआ छंद का नाम दिया गया था----७० साल पहले ही...
जवाब देंहटाएं-- गलत वर्णन है कि इसमें गति, यति ताल नहीं होती---ये सभी गतिमय, यतिबद्ध व ताल-बद्ध - सन्स्क्रित श्लोकों व मन्त्रों की भांति--अतुकान्त छंद -होते हैं ।
---आज इस छंद की एक मुख्य धारा को "अगीत" कहा जाता है...देखिये "अतुकान्त कविता" व अगीत..के कुछ उदाहरण.....
"तो फ़ि क्या हुआ,
सिद्ध राज जयसिंह;
मर गया हाय,
तुम पापी प्रेत उसके। "------मैथिली शरण गुप्त
"उस पूर्ण ब्रह्म,उस पूर्ण काम से,
पूर्ण जगत, होता विकसित;
उस पूर्ण ब्रह्म का कौन भाग ,
जग संरचना में, व्याप्त हुआ ?
क्या शेष बचा ,जाने न कोई;
वह शेष भी सदा पूर्ण रहता है।"--डा श्याम गुप्त
"कवि चिथड़े पहने,
चखता संकेतों का रस,
रचता-रस, छंद, अलंकार,
ऐसे कवि के,
क्या कहने। "----डा रंगनाथ मिश्र ’सत्य’
बिल्कुल नया परिचय - रबड छंद...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंarre waah !
जवाब देंहटाएंविना किसी लय ,अतुकान्त ,मुक्तिपूर्ण स्वतन्त्र रचना ही रबड़ या केंचुआ छंद कही जाती है
जवाब देंहटाएंविना किसी लय ,अतुकान्त ,मुक्तिपूर्ण स्वतन्त्र रचना ही रबड़ या केंचुआ छंद कही जाती है
जवाब देंहटाएंहिन्दी साहित्य में मुक्त छंद का नया नाम निराला ने रबड़ या केंचुआ छंद दिया है
जवाब देंहटाएंहिन्दी साहित्य में मुक्त छंद का नया नाम निराला ने रबड़ या केंचुआ छंद दिया है
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