आज भी पसरे हुए,
बादल पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे,
अब पहाड़ी गाँव में।।
डर गयी है धूप सुख
की आज तो,
छा गयीं दुख की
बदलियाँ आज तो,
भूख से व्याकुल हुए
सब, अब पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे,
अब पहाड़ी गाँव में।।
फट रहे बादल दरकती
है धरा,
उफनती धाराओं ने
जीवन हरा,
कुछ नहीं बाकी बचा
है, अब पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे,
अब पहाड़ी गाँव में।।
पाप का बोझा हिमालय
क्यों सहे?
इसलिए घर-द्वार,
देवालय बहे,
ज़लज़ला-तूफान आया,
अब पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे,
अब पहाड़ी गाँव में।।
पर्वतों में जब
प्रदूषण घुल गया,
तीसरा तब नेत्र शिव
का खुल गया,
मौत ने डेरा जमाया,
अब पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे,
अब पहाड़ी गाँव में।।
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गुरुवार, 27 जून 2013
"नेत्र शिव का खुल गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
यथार्थ का सम्पूर्ण चित्रण
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
आभार गुरुवर ||
सन्नाटा पसड़ा पड़ा, सड़ता हाड़ पहाड़ |
हटाएंकलरव कल की बात है, गायब सिंह दहाड़ |
गायब सिंह दहाड़, ताड़ अब कारस्तानी |
कुदरत से खिलवाड़, करे फिर पानी-पानी |
सुधरो नहीं सिधार, खाय झापड़ झन्नाटा |
मद में माता मनुज, सन्न ताके सन्नाटा ||
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
हटाएंसन्नाटा पसड़ा पड़ा, सड़ता हाड़ पहाड़ |
हटाएंकलरव कल की बात है, गायब सिंह दहाड़ |
गायब सिंह दहाड़, ताड़ अब कारस्तानी |
कुदरत से खिलवाड़, करे फिर पानी-पानी |
सुधरो नहीं सिधार, खाय झापड़ झन्नाटा |
मद में माता मनुज, सन्न ताके सन्नाटा ||
सही लिखा आपने, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
डर गयी है धूप सुख की आज तो,
जवाब देंहटाएंछा गयीं दुख की बदलियाँ आज तो,
बढ़िया लिखा है ..
उत्कृष्ट संजीदा और सामयिक प्रस्तुति .बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंपर्वतों में जब प्रदूषण घुल गया,
जवाब देंहटाएंतीसरा तब नेत्र शिव का खुल गया,
मौत ने डेरा जमाया, अब पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे, अब पहाड़ी गाँव में।।।……………यथार्थ का सटीक वर्णन
बहुत बढ़िया,सटीक प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: एक हमसफर चाहिए.
pahad me hui trasdi ka marmik varnan prastut kiya hai aapne .aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मयंक जी !
जवाब देंहटाएंlatest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
फट रहे बादल दरकती है धरा,
जवाब देंहटाएंउफनती धाराओं ने जीवन हरा..
बहुत सही ...होनी कोई नहीं टाल सकता ..
पाप का बोझा हिमालय क्यों सहे?
जवाब देंहटाएंइसलिए घर-द्वार, देवालय बहे,
ज़लज़ला-तूफान आया, अब पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे, अब पहाड़ी गाँव में।।
बहुत सटीक अर्थ पूर्ण भावपूरित प्रासंगिक रचना .