मर गयी है आदमीयत
भर गई शैतानियत
देखकर धोखाधड़ी को
डर गयी मासूमियत
प्यार है केवल दिखावा
बढ़ गयी रूमानियत
आदमी में आजकल के
घट गयी ईमानियत
हो गया ईमान पैसा
खो गई इन्सानियत
कैद है दैरो-हरम में
रामियत-रहमानियत
ढोंग है अब धर्म का
और पाप की है सल्तनत
हो गया माहौल
गन्दा
वक्त की है
कैफियत
“रूप” से सब आँकते
माशूक की अब हैसियत
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बुधवार, 12 जून 2013
"खो गई इन्सानियत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सच में, कहीं जाकर सो गयी है इन्सानियत।
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?
जवाब देंहटाएंbahut sundqr bhav sanjoye hain
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने, जमाने की हवा ही कुछ ऐसी है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आज के सन्दर्भ में सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है । आप को बधाई । क्या इसे मैं अपनी पत्रिका सहजकविता में छाप सकता हूँ ? आप की अनुमति चाहिए ।
जवाब देंहटाएंसुधेश जी आप मेरे नाम के साथ इस रचना को अपनी पत्रिका सहजकविता में प्रकाशित कर सकते हैं।
हटाएंआभार आपका...!
“रूप” से सब आँकते
जवाब देंहटाएंमाशूक की अब हैसियत
अब तो धन से आंकी जाती है माशूक की हैसियत .
बढिय़ा शास्त्री जी, क्या बात है
जवाब देंहटाएंमीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
बहुत सुंदर बातें छोटे छोटे वाक्यों में।
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति कल चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाकई !
जवाब देंहटाएंहो गया ईमान पैसा
जवाब देंहटाएंखो गई इन्सानियत katu sacchai ....
बिल्कुल सच
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआदमियत यकीनन गायब है