![]() थक गया हूँ और अब कितना चलूँगा।
अब हमेशा के लिए विश्राम लूँगा।।
वज्र सी अब है नहीं छाती मेरी,
मूँग सीने पर भला कब तक दलूँगा।
इक पका सा पात हूँ मैं डाल का,
ज़िन्दग़ी को और मैं कब तक छलूँगा।
अब नहीं बाकी बचीं कुछ कामनाएँ,
मैं नये परिवेश में कब तक पलूँगा।
अब लहू का वेग ऐसा है कहाँ,
मैं बदन पर तेल को कब तक मलूँगा।
खो गया है “रूप” भी अब तो सलोना,
किस तरह से आज साँचे में ढलूँगा।
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मंगलवार, 25 जून 2013
"और अब कितना चलूँगा...?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जब तक शेष ऊर्जा, तब तक चलते रहें।
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जवाब देंहटाएंअब लहू का वेग ऐसा है कहाँ,
मैं बदन पर तेल को कब तक मलूँगा।
खो गया है “रूप” भी अब तो सलोना,
किस तरह से आज साँचे में ढलूँगा।
Superb.
La'Zabaab !
जवाब देंहटाएंकिन्तु साथ ही यह भी कहूंगा:
समृद्ध अपने अनुभवों से, दुनिया को बदलना है तुम्हे,
सफ़र लंबा है 'रूप' जी, अभी बहुत दूर चलना है तुम्हें।
और हाँ, जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाये !
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जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना ...पर चलना रुकना हमारे हाथ में कहाँ ?
जवाब देंहटाएंसार्थकता को बयाँ करती सटीक प्रस्तुती,बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा,लेकिन जब तक शरीर में ऊर्जा बची है तब तक कुछ तो करते ही रहना है ,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,सुंदर गजल ,,,
Recent post: एक हमसफर चाहिए.
शास्त्री जी,माफ करना। ये कविता तो बिलकुल अच्छी नहीं लगी।
जवाब देंहटाएंजब तक दिया में तेल है ,जलते रहो
जवाब देंहटाएंअँधेरी दुनिया में रौशनी फैलाते रहो
latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
शाश्त्री जी, आप तो कवि हैं निरंतर उत्साह से लगे रहिये. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंयह सिर्फ कविता के तौर पर तो ठीक है पर आपके भाव ऐसे नहीं चाहिए
आपको निरंतर चलना होगा
न रुकना न थकना होगा
हम तो बैठे आपके भरोसे
हमारे भरोसे को रखना होगा
विजयी भव
नमस्कार
आपकी यह रचना कल बुधवार (26-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधार कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य रखें |
सादर
सरिता भाटिया
हारता है तन,कि मन भी हार जाता ,
जवाब देंहटाएंकिन्तु रुकना धर्म जीवन का नहीं है!
बंधु,कोई हाथ जब तक हाथ में है ,
एक साथी का सहारा साथ में है
थकन सह कर भी कदम थमता नहीं है !
भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनिर्वेद तक तो ठीक है लेकिन इस तरह की निराशा वाली कविता की तारीफ़ मैं कैसे करूं? आप तो सतत जिन्दादिल इंसान है , प्रसन्न रहे और खुशियां साझा करें सबके साथा।
जवाब देंहटाएंजब तक जीवन है तब तक तो चलना ही होगा..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंsafar abhi kahan ruka hai .......chalte chalna hai..
जवाब देंहटाएं