ढाई
आखर में छिपा, दुनियाभर का मर्म।
प्यार
हमारा कर्म है, प्यार हमारा धर्म।१।
जो
नैसर्गिकरूप से, उमड़े वो है प्यार।
प्यार
नहीं है वासना, ये तो है उपहार।२।
जब
तक जीवित प्यार है, तब तक है संसार।
प्यार
बिना होता नहीं, जग में कोई उदार।३।
जीव-जन्तु
भी जानते, क्या होता है प्यार।
आ
जाते हैं पास में, सुनकर मधुर पुकार।४।
उपवन
सींचो प्यार से, मुस्कायेंगे फूल।
पौधों
को भी चाहिए, नेह-नीर अनुकूल।५।
विरह
तभी है जागता, जब होता है स्नेह।
विरह-मिलन
के मूल में, विद्यमान है नेह।६।
दुनियाभर
में प्यार की, बड़ी अनोखी रीत।
गैरों
को अपना करे, ऐसी होती प्रीत।७।
बन
जाते हैं प्यार से, सारे बिगड़े काम।
प्यार
और अनुराग तो, होता ललित-ललाम।८।
छिपा
हुआ है प्यार में, जीवन का विज्ञान।
प्यार
और मनुहार से, गुरू बाँटता ज्ञान।९।
छोटे
से इस शब्द की, महिमा अपरम्पार।
रोम-रोम
में जो रमा, वो होता है प्यार।१०।
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आपकी यह रचना कल मंगलवार (25-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति . आभार मोदी व् मीडिया -उत्तराखंड त्रासदी से भी बड़ी आपदा
जवाब देंहटाएंआप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
बेहतरीन व सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुभ कामनायें...
beautiful
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहे..
जवाब देंहटाएंएक छोटा-सा शब्द और व्याप्ति कितनी !
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
जवाब देंहटाएंवापस धनबाद आ गया हूँ-
सादर-
उत्क्रुस्त , भावपूर्ण एवं सार्थक अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें .
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
चाह हिलग बैराग नहि, चाह बिलग अनुराग ।
जवाब देंहटाएंचाह लाग लगाई है, चाह लगाई लाग ॥
भावार्थ : -- अभिलाषा से परिचित होने से बैराग्य नहीं होता,
अभिलाषा से अपरिचित रहने से अनुराग नहीं होता, यह
अभिलाषा ही है जो अनुराग उपजाति है, और यह अभिलाषा
ही है जो शत्रुता उपजाति है ॥
अर्थात : - सत्ता हो या प्रेम "वस्तु की चाह से ही विषय में आसक्ति होती है"