मुझे
आज अपनी मुरलिया बना तो
तू
एक बार होठों से मुझको लगा तो
संगीत
को छेड़ दूँगी मैं दिलवर
तू
इक बार मुझको उठाकर बजा तो
सुनाऊँगी
मैं मेघ मल्हार तुझको
सुराखों
को तू कायदे से दबा तो
मैं
कोयल सी चहकूँगी तेरे चमन में
तू
वीरान गुलशन सजाकर दिखा तो
मैं
मोहन की प्यारी हूँ मन मोह लूँगी
निराशा
को तू अपने मन से भगा तो
मिरा
“रूप” और रंग तेरे लिए
है
सुरों
की तू इक बार महफिल सजा तो
|
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गुरुवार, 6 जून 2013
"वीरान गुलशन सजाकर दिखा तो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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शानदार,बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंइस वीराने में कोई तो सुर छेड़े..सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति .बधाई . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
जवाब देंहटाएंBHARTIY NARI .
एक छोटी पहल -मासिक हिंदी पत्रिका की योजना
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut bhadiya rachna hai ..................
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशानदार गुरु जी बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंचरखा चर्चा चक्र चल, सूत्र कात उत्कृष्ट ।
पट झटपट तैयार कर, पलटे नित-प्रति पृष्ट ।
पलटे नित-प्रति पृष्ट, आज पलटे फिर रविकर ।
डालें शुभ शुभ दृष्ट, अनुग्रह करिए गुरुवर ।
अंतराल दो मास, गाँव में रहकर परखा ।
अतिशय कठिन प्रवास, पेश है चर्चा-चरखा ।
वाह लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम.
नमस्कार
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
इस मुरलिया की धुन प्यारी लगी
जवाब देंहटाएंkya khoobsurat rachna hai guru jee!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर रचना शनिवार 08.06.2013 को निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है! कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना है..बधाई...महोदय, किसी की मुरलिया बनना और उस मुरलिया को साधना; दोनों ही कठिन कार्य हैं...और जब सब सध गया तो फिर क्या कहने??
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी हिंदी ग़ज़ल कही आदरणीय शास्त्री जी मजा आ गया पढ़ के हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !
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