मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
उल्लू का रंग-रूप निराला।
लगता कितना भोला-भाला।।
अन्धकार इसके मन भाता।
सूरज इसको नही सुहाता।।
यह लक्ष्मी जी का वाहक है।
धन-दौलत का संग्राहक है।।
इसकी पूजा जो है करता।
ये उसकी मति को है हरता।।
धन का रोग लगा देता यह।
सुख की नींद भगा देता यह।।
सबको इसके बोल अखरते।
बड़े-बड़े इससे हैं डरते।।
विद्या का वैरी कहलाता।
ये बुद्धू का है जामाता।।
पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना।
कभी न उल्लू तुम कहलाना।।
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
उल्लू का रंग-रूप निराला। लगता कितना भोला-भाला।। अन्धकार इसके मन भाता। सूरज इसको नही सुहाता।। यह लक्ष्मी जी का वाहक है। धन-दौलत का संग्राहक है।। इसकी पूजा जो है करता। ये उसकी मति को है हरता।। धन का रोग लगा देता यह। सुख की नींद भगा देता यह।। सबको इसके बोल अखरते। बड़े-बड़े इससे हैं डरते।। विद्या का वैरी कहलाता। ये बुद्धू का है जामाता।। पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना। कभी न उल्लू तुम कहलाना।। |
बहुत सुंदर बाल रचना.
जवाब देंहटाएंअब 'उलूक' क्या करे ? :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक रचना ..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तति का लिंक 02-04-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1936 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद