पैंसठ वर्षों तक रहा, माता जी का साथ।
अब माँ सुरपुर को गयी,
मैं हो गया
अनाथ।।
जगदम्बा के रूप में,
रहती थी हर
ठाँव।
माँ के आँचल में मिली,
मुझे हमेशा
छाँव।।
ममता का जिसकी नहीं,
होता कोई
अन्त।
माँ के ही दिल में बसा,
करुणा-प्यार
अनन्त।।
मतलब का संसार है,
मतलब के
उपहार।
लेकिन दुनिया में नहीं,
माता जैसा
प्यार।।
लालन-पालन में दिया,
ममता और
दुलार।
बोली-भाषा को सिखा,
माता ने
उपकार।।
होता है सन्तान का, माता का सम्वाद।
माता को करते सभी,
दुख आने पर
याद।।
नारायण से भी बड़ी,
नारी की है
जात।
सृजन कर रही सृष्टि का,
इसीलिए है
मात।।
अब मेरे सिर पर नहीं,
माता का
आशीष।
कैसे अब कहलाउगाँ,
वाणी का
वागीश।।
चरैवेति है ज़िन्दग़ी, रुकना तो हैं मौत।
सड़ जाता जल धाम भी, जब थम जाता स्रोत।।
कुदरत का सब खेल है, नहीं किसी का दोष।
जीते-जी कैसे करूँ, उच्चारण खामोश।।
|
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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015
दोहे ”मैं हो गया अनाथ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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sach likha hai aapne -कुदरत का सब खेल है, नहीं किसी का दोष।
जवाब देंहटाएंधैर्य रखें । प्रकृति का नियम है सबको छोड़नी है दुनियाँ । तारों में देखें । माँ का टिमटिमाना अब ।
जवाब देंहटाएंहोता है सन्तान का, माता का सम्वाद।
जवाब देंहटाएंमाता को करते सभी, दुख आने पर याद।।
माता को श्रद्धान्जलि देती है औलाद ,
फरियादी के हाथ में रहती बस फ़रियाद।
सशक्त ईमानदार विरुदावलि माँ के प्रति।
माताश्री को विनम्र श्रद्धान्जलि.
जवाब देंहटाएंममता का जिसकी नहीं, होता कोई अन्त।
जवाब देंहटाएंमाँ के ही दिल में बसा, करुणा-प्यार अनन्त।।
मतलब का संसार है, मतलब के उपहार।
लेकिन दुनिया में नहीं, माता जैसा प्यार।।
..बहुत सही ...माँ जैसा प्यार करने वाला कोई और हो ही सकता संसार में ...
बहुत सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंसादर नमन ....
जवाब देंहटाएंपरम आदरणीय ,
जवाब देंहटाएंसादर नमन ।
माता सा स्नेह न किसी से मिल सकता है न ही कोई उस कमी को भर सकता है ,…
हम आँखों में अश्रु मोती लिए बस उन्हें और उनके प्रेम के अहसास को जी जरूर सकते हैं उम्र भर।
माताश्री को विनम्र श्रद्धांजलि।