जाने कहाँ खो गया अपना, आज पुराना गाँव।
नहीं रही अपने आँगन में, आज नीम की छाँव।।
घर-घर में हैं टैलीवीजिन, सूनी है चौपाल,
छाछ-दूध-नवनीत न भाता, चाय पियें गोपाल,
भूल गये नाविक के बच्चे, आज चलानी नाव।
नहीं रही अपने आँगन में, आज नीम की छाँव।।
पहले जैसा निश्छल बचपन, नहीं दिखाई देता,
मन्दिर में अब कथा-कीर्तन, नहीं सुनाई देता,
पूजा-पध्दति की सी.डी. ने, तोड़ दिये हैं पाँव।
नहीं रही अपने आँगन में, आज नीम की छाँव।।
नहीं रहे अब खेल पुराने, दंगल-कुश्ती भूले,
जिम में जाकर अब यौवन के हाथ-पाँव हैं फूले,
मस्तक पर छायी है चर्बी, भूल गये सब दाँव।
नहीं रही अपने आँगन में, आज नीम की छाँव।।
पशुशाला में बैलों के, अब खूँटे हैं सब खाली,
खाद न हो गोबर की तो, लगती कृत्रिम हरियाली?
"रूप" हंस का भर कर बगुले बैठे हैं हर ठाँव
नहीं रही अपने आँगन में, आज नीम की छाँव।।
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शनिवार, 18 अप्रैल 2015
"नीम की छाँव नहीं रही" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंsahi kaha ....neem ki chanv naa rahi ..घर-घर में हैं टैलीवीजिन, सूनी है चौपाल,
जवाब देंहटाएंछाछ-दूध-नवनीत न भाता, चाय पियें गोपाल,
बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंbahut sundar ...kavita me ek tees ubhar kar aa rahi hai...
जवाब देंहटाएंआपका दर्द आपकी रचनाओं में उभर के आ रहा है ... आशा है अप जल्दी इस दुःख से बाहर आयें ...
जवाब देंहटाएंनमस्कार शास्त्री जी ...
हाँ, सब कुछ अब बदल गया है. सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय ,
जवाब देंहटाएंसादर नमन।
नीम की छाँव............ एक लम्बी साँस भरकर सिर्फ़ याद ही किया जा सकता है वो सब।
सच वो पेड़ पौधे हरियाली गुम हैं अब तो…… मेरा बचपन तो अनगिनत पेड़ पौधों के
बीच बीता है आदरणीय। संभव हो तो मेरे ब्लॉग्स पर पधारकर अपना मार्गदर्शन रुपी
आशीर्वाद प्रदान कीजियेगा।
http://lekhaniblog.blogspot.in/ एक लेखनी मेरी भी
http://lekhaniblogdj.blogspot.in/नारी का नारी को नारी के लिए
अपने दर्द को अक्षरों में लपेट कर इस तरह बताया है की आँखें नम हो जाय
जवाब देंहटाएंकवी ही युग की पीड़ा जीता है, इस कथन को अपने चरितार्थ किया है सर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण
जवाब देंहटाएं