सरपंच मेरे गाँव के, कितने कमाल के
होते हैं फैसले जहाँ, सिक्का उछाल के
भक्तों के साथ भेद-भाव, कर रहे भगवन्
इंसाफ के मन्दिर में, जाना देखभाल के
जब बिक गया ज़मीर तो, नज़ीर क्या करे
मिलते नहीं जवाब हैं, सीधे सवाल के
होली में भाईचारा तो, कब से ज़ुदा हुआ
बेरंग हो गये हैं रंग, अब गुलाल के
कच्चे फलों को तोड़, पाल में हैं पकाते
पायें कहाँ से अब, रसीले आम डाल के
सेवक में आज सेवा का, ज़ज़्बा नहीं रहा
कब्ज़े हुए हैं हर जगह, अब तो दलाल के
बोली लगा रहे हैं, अब सौदाई “रूप” की
महिलाएँ कैसे आबरू, रक्खें सँभाल के
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बुधवार, 8 अप्रैल 2015
"ग़ज़ल-होते हैं फैसले जहाँ, सिक्का उछाल के" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाषा व व्यगं
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-4-15 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1943 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंएक पीड़ा अभिव्यक्त हो उठी है ...
जवाब देंहटाएंवाह.;बहुत खूुब
जवाब देंहटाएंसरपंच मेरे गाँव के, कितने कमाल के
होते हैं फैसले जहाँ, सिक्का उछाल के
हमेशा की तरह अच्छी कविता है .
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