धनहीन हूँ भिखारी, मैं दान माँगता हूँ। झोली पसारकर माँ! मैं ज्ञान माँगता हूँ।। दुनिया की भीड़ से मैं, बच करके चल रहा हूँ, माँ तेरे रजकणों को, माथे पे मल रहा हूँ, निष्प्राण अक्षरों में, मैं प्राण माँगता हूँ। झोली पसारकर माँ! मैं ज्ञान माँगता हूँ।। अज्ञान का अन्धेरा, छँट जाये मन से मेरे, विज्ञान का सवेरा, घट जाये मन में मेरे, मैं शीश को नवाकर, प्रज्ञान माँगता हूँ। झोली पसारकर माँ! मैं ज्ञान माँगता हूँ।। तुलसी, कबीर जैसी, मैं भक्ति माँगता हूँ, मीरा व सूर सी माँ! आसक्ति माँगता हूँ, छन्दों-पदों का माता! वरदान माँगता हूँ। झोली पसारकर माँ! मैं ज्ञान माँगता हूँ।। |
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मंगलवार, 15 मार्च 2016
सरस्वती वन्दना "माता! वरदान माँगता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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