दिल से दिल को आज मिलाएँ, रंगों की रंगोली में।
आओ शिकवे-गिले मिटायें, प्रीत बढ़ाएँ होली में।।
एक साल में एक बार यह पर्व सलोना आता है,
फाग-फुहारों के पड़ने से जुड़ता दिल से नाता है,
संगी-साथी को बैठाएँ, अरमानों की डोली में।
आओ शिकवे-गिले मिटायें, प्रीत बढ़ाएँ होली में।।
पड़े हुए हैं अलग-थलग जो, रिश्तों में दरार आई,
उनको टीका कर गुलाल का, भर दो अब गहरी खाई,
आओ फिर सम्बन्ध बनाएँ, बिछुड़े दामन-चोली में।
आओ शिकवे-गिले मिटायें, प्रीत बढ़ाएँ होली में।।
नहीं साँच को आँच, होलिका जली दर्प की ज्वाला में,
शक्ति असीमित भरी हुई है प्रभू नाम की माला में,
प्यार भरा आशीष निहित है, अक्षत्-चन्दन रोली में।
आओ शिकवे-गिले मिटायें, प्रीत बढ़ाएँ होली में।।
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सोमवार, 21 मार्च 2016
"शिकवे-गिले मिटायें होली में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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