याद हमेशा कीजिए, वीरों
का बलिदान।
सीमाओं पर देश की,
देते जान जवान।।
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उनकी शौर्य
कहानियाँ, गाते धरती-व्योम।
आजादी के यजन में, किया
जिन्होंने होम।।
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नेता मेरे देश के,
ऐसे हैं मरदूद।
भाषण तक सीमित हुए,
जिनके आज वजूद।।
--
आज हमारे देश में,
सबसे दुखी किसान।
फाँसी खा कर मर
रहे, धरती के भगवान।।
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अमर शहीदों का
जहाँ, होता हो अपमान।
सिर्फ कागजों में
बना, अपना देश महान।।
--
देश भक्ति का हो
रहा, पग-पग पर अवसान।
भगत सिंह को आज भी,
नहीं मिला वो मान।।
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गोरों का करते रहे,
जो जमकर गुणगान।
शासन का उनको मिला,
सत्ता-सूत्र-कमान।।
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कितने ही दल हैं
यहाँ, परिवारों से युक्त।
होते हैं बारम्बार
हैं, नेता वही नियुक्त।।
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लोकतान्त्रिक देश
में, कहाँ रहा जनतन्त्र।
गलियारों में
गूँजते, जाति-धर्म के मन्त्र।।
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राम और रहमान को, भुना रहे हैं लोग।
जनता दुष्परिणाम को,
आज रही है भोग।।
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वर्तमान है लिख
रहा, अब अपना इतिहास।
आम आज भी आम है,
खास आज भी खास।।
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बुधवार, 5 अप्रैल 2017
दोहे "सबसे दुखी किसान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
बहुत सुन्दर दोहे।
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