चंचल मन होता मतवाला।
बचपन होता बहुत निराला।।
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दीवारों पर चित्र बनाते,
देख तितलियाँ रंग-बिरंगी।
बैंगन-आम और लौकी की,
चित्रकला करते बेढंगी।
पापा-मम्मी खुश हो जाते,
जब करता था पन्ना काला।
बचपन होता बहुत निराला।।
जी भरकर तब खेल खेलते,
कभी-कभी गुस्सा दिखलाते।
लेकिन गाँठ न मन में रखते,
फिर संगी-साथी बन जाते।
बस्ता-तख्ती लेकर जातीं,
संग में मेरे मुन्नी-माला।
बचपन होता बहुत निराला।।
बगिया में चुपके से जाते,
कच्चे आम तोड़कर लाते।
फिर चटकारे लेकर खाते, पापाजी तब डाँट पिलाते,
जब घर में आ जाता,
मेरे पीछे-पीछे अमियोंवाला। |
अनोखे दिन
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
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