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जन्म हिमालय पर लिया, नमन आपको मात।
शैलसुता के नाम से, आप हुईं विख्यात।।
कठिन तपस्या से मिला, ब्रह्मचारिणी नाम।
तप के बल से पा लिया, शिवशंकर का धाम।।
चन्द्र और घंटा रहे, जिनके हरदम पास।
घंटाध्वनि से हो रहा, दिव्यशक्ति आभास।।
जगजननी माता बनी, जग की सिरजनहार।
कूष्मांडा ने रचा, सारा ही संसार।।
मूरख भी ज्ञानी बने, कृपा करें जब मात।
स्कन्दमाता जी धरो, मेरे सिर पर हाथ।।
योग-साधना से मिटे, क्षोभ-लोभ औ’ काम।
कात्यायिनी मात का, बैजनाथ है धाम।।
कालरात्री का करो, सच्चे मन से जाप।
दुर्गाजी निज भक्त का, हर लेती हैं ताप।।
सद्यशक्ति का पुंज हैं, देती हैं परित्राण।
महागौरि श्वेताम्बरा, करती हैं कल्याण।।
देती सारी सिद्धियाँ, सिद्धिदात्रि मात।
नवमरूप में रम रहीं, माता सबके साथ।।
मर्यादा की जीत है, मक्कारी की हार।
विजयादशमी विजय का, है पावन त्यौहार।।
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गुरुवार, 28 सितंबर 2017
दोहे "माता सबके साथ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर।
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