गुम हो गया उजाला क्यों?
दर्पण काला-काला क्यों?
चन्दा गुम है, सूरज सोया
काट रहे, जो हमने बोया
तेल कान में डाला क्यों?
राज-पाट सिंहासन पाया
सुख भोगा-आनन्द मनाया
फिर करता घोटाला क्यों?
जब खाली भण्डार पड़े हैं
बारिश में क्यों अन्न सड़े हैं
गोदामों में ताला क्यों?
कहाँ गयीं सोने की लड़ियाँ
पूछ रही हैं भोली चिड़ियाँ
सूखी मंजुल माला क्यों?
जनता सारी बोल रही है
न्याय-व्यवस्था डोल रही है
दाग़दार मतवाला क्यों?
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सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 11 सितंबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआमजन के दिलों में उतरता आपका अत्यंत प्रभावशाली गीत आदरणीय शास्त्री जी। सरल शब्दावली में लिपटे गहरे भाव दूर-दूर तक अपनी आवाज़ ले जाते हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएंवर्तमान का चिंतन करती एक अच्छी रचना ... सीधी दिल में उतरती हुयी ...
जवाब देंहटाएंगहरा चिन्तन, समसामयिक रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंआदरणीय मयंक जी ----- आज कल के ज्वलंत प्रश्न बड़े ही मीठे शब्दों में पिरोकर सुंदर गीत रच दिया आपने | सरलता से भरी रचना सहजता से मन को छू जाती है | हर्दिक बधाई आपको -------
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