बादल मचा रहे हैं शोर।
नाच रहा जंगल में मोर।।
बहुत डराते काले बादल।
लेकिन मोर हुए हैं पागल।
बदरा आये साँझ-सकारे।
मोर झूमते पंख पसारे।।
पिहू-पिहू की भाषा बोलें।
राज़ प्रेम के अपने खोलें।।
देख मोरनी हर्षित होती।
आपा-धापा अपना खोती।।
मन में है बस यही पिपासा।
कभी न जाये अब चौमासा।।
देते मोर यही सन्देशा।
हरा-भरा हो देश हमेशा।।
चातक कभी रहे ना प्यासा।
पूरी हों सबकी अभिलाषा।।
चारों ओर रहे हरियाली।
जन-जीवन में हो खुशहाली।।
मिलकर खुशियाँ सभी मनायें।
लोग हमेशा नाचें-गायें।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |

बहुत सुन्दर बाल कविता
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंहरी-भरी धरती देखकर मन मयूर भी नाच उठता है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर बालकविता ।
सरल शब्दों में व्यापक संदेश।
बधाई।