हर रोज रंग अपना, मौसम बदल रहा है।
घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।।
सूरज नियम से उगता,
चन्दा नियम से आता।
कल-कल निनाद करता,
झरना ग़ज़ल सुनाता।
पतझड़ के बाद अपना, उपवन बदल रहा है।
घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।।
उड़ उड़के आ रहे हैं,
पंछी खुले गगन में।
परदेशियों ने डेरा,
डाला हुआ चमन में।
आसन वही पुराना, शासन बदल रहा है।
घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।।
महफिल में आ गये हैं,
नर्तक नये-नवेले।
बेजान हैं तराने,
शब्दों के हैं झमेले।
हैरत में है ज़माना, दामन बदल रहा है।
घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।।
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बुधवार, 17 जनवरी 2018
गीत "परदेशियों ने डेरा, डाला हुआ चमन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-01-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2852 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुंदर
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