आरती उतार लो,
आ गया बसन्त है!
ज़िन्दग़ी सँवार लो,
आ गया बसन्त है!
खेत लहलहा उठे,
खिल उठी वसुन्धरा,
चित्रकार ने नया,
आज रंग है भरा,
पीत वस्त्र धार लो,
आ गया बसन्त है!
ज़िन्दग़ी सँवार लो,
आ गया बसन्त है!
शारदे के द्वार से,
ज्ञान का प्रसाद लो,
दूर हों विकार सब,
शब्द का प्रसाद लो,
धूप-दीप साथ ले,
आरती उतार लो!
आ गया बसन्त है!
ज़िन्दग़ी सँवार लो,
आ गया बसन्त है!
माँ सरस्वती से आज,
बिम्ब नये माँग लो,
वन्दना के साथ में,
भाव नये माँग लो,
मातु से प्रवाह की,
अमल-धवल धार लो।
आ गया बसन्त है!
ज़िन्दग़ी सँवार लो,
आ गया बसन्त है!
|
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रविवार, 21 जनवरी 2018
गीत "बसन्त पञ्चमी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-01-2018) को "आरती उतार लो, आ गया बसन्त है" (चर्चा अंक-2856) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
बसन्तपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं