गाओ फिर से नया तराना।।
सब कुछ तो पहले जैसा है,
लक्ष्य आज भी तो पैसा है,
सिर्फ कलेण्डर ही तो बदला,
वही ठौर है, वही ठिकाना।
नित्य नये अनुभव होते हैं,
कुछ हँसते हैं, कुछ रोते हैं,
जीवन तो बस एक सफर है,
सबको पड़ता आना-जाना।
पीना पड़ा यहाँ गरल है,
शंकर बनना नहीं सरल है,
कैसे महादेव बन जायें?
मुश्किल गंगा धार बहाना।
आपाधापी, भाग-दौड़ है,
गुणा-भाग है और होड़ है,
इक आता है, इक जाता है,
जग है एक मुसाफिरखाना।
लोग मील के पत्थर जैसे,
अपनी मंजिल पायें कैसे?
औरों को पथ बतलाते हैं,
ये क्या जानें कदम बढ़ाना।
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बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंनित्य नये अनुभव होते हैं,
जवाब देंहटाएंकुछ हँसते हैं, कुछ रोते हैं,
जीवन तो बस एक सफर है,
सबको पड़ता आना-जाना।
आपाधापी, भाग-दौड़ है,
गुणा-भाग है और होड़ है,
इक आता है, इक जाता है,
जग है एक मुसाफिरखाना।
बेहद सशक्त अभिव्यक्ति सारगर्भित भाव लिए -
तरुवर बोला पात से सुनो पात एक बात ,
या घर या ही रीत है एक आवत एक जात।
कबीर की उल्लेखित पंक्तियों का भाव विस्तार प्रतीत होती है शास्त्री जी की कविता -
पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम ,
पुनरपि जननी जठरे शरणम।
सुन्दर मनोहर शास्त्री जी बहुत अर्थ पूर्ण गत्यात्मक।