इनके जैसा है नहीं, जग
में छ्न्दविधान।१।
विषय-वस्तु में सार हो, लेकिन
हो लालित्य।
दुनियाँ को जो दे दिशा, वो ही
है साहित्य।२।
पेड़ नीम का झेलता, पीड़ा
को चुपचाप।
देता शीतल छाँव को, हरता
सबके ताप।३।
त्योहारों में बाँटिए, खुश
होकर आनन्द।
सम्बन्धों में कीजिए, बैर-भाव
को बन्द।४।
मोटी रकम डकार कर, करते
बहस वकील।
गद्दारों के पक्ष में, देते
तर्क दलील।५।
बालक रखते हो जहाँ, हाथों
में पिस्तौल।
उस जन्नत की धरा का, बिगड़
गया माहौल।६।
सदमा सैनिक झेलते, सीमा
पर दिन-रात।
लेकिन शासक कर रहे, चिकनी-चुपड़ी
बात।७।
समय बीतता जा रहा, और
करो मत देर।
जन-मानस अब चाहता, करो
पाक को ढेर।८।
अपने भारत देश में, हो
समान कानून।
माटी में खिलने लगें, महके
हुए प्रसून।९।
उपजाता जो अन्न को, वह है
कृषक महान।
नमन जवानों को करे, पूरा
हिन्दुस्तान।१०।
जनता की है दुर्दशा, जन-जीवन
बेहाल।
कूड़ा-कर्कट बीनते, भारत
माँ के लाल।११।
आड़ी-तिरछी हाथ में, सबके
बनीं लकीर।
कोई है राजा यहाँ, कोई रंक-फकीर।१२।
बिगड़ गया है आज तो, दुनिया
का परिधान।
मानवता का हो रहा, पग-पग
पर अपमान।१३।
वृक्ष बचाते हैं धर,देते
सुखद समीर।
लहराते जब पेड़ हैं, घन
बरसाते नीर।१४।
मक्कारों ने हर लिया, जनता
का आराम।
बगुलों ने टोपी लगा, जीना
किया हराम।१५।
नौका लहरों में फँसी, बेबस
खेवनहार।
ऐसा नाविक चाहिए, जो ले
जाये पार।१६।
अंगारा सेमल हुआ, वन
में खिला पलाश।
मन के उपवन में उठी, भीनी
मन्द-सुवास।१७।
|
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शनिवार, 6 जनवरी 2018
विविध दोहावली "हाथों में पिस्तौल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर दोहावली
जवाब देंहटाएंजनता की है दुर्दशा, जन-जीवन बेहाल।
जवाब देंहटाएंकूड़ा-कर्कट बीनते, भारत माँ के लाल।११।
आड़ी-तिरछी हाथ में, सबके बनीं लकीर।
कोई है राजा यहाँ, कोई रंक-फकीर।१२।
बिगड़ गया है आज तो, दुनिया का परिधान।
मानवता का हो रहा, पग-पग पर अपमान।१३।
वृक्ष बचाते हैं धरा ,देते सुखद समीर।
लहराते जब पेड़ हैं, घन बरसाते नीर।१४।
बेहतरीन अभिव्यक्ति।