हे मनमोहन देश में, फिर से लो अवतार।।
सुनने को आतुर सभी, बंसी की झंकार।
मोहन आओ धरा पर, भारत रहा पुकार।।
श्री कृष्ण भगवान ने, दूर किया
अज्ञान।
युद्ध भूमि में पार्थ को, दिया अनोखा
ज्ञान।।
भारत के वर्चस्व का, जिससे हो आभास।
लगता वो ही ग्रन्थ तो, हमको सबसे
खास।।
वेद-पुराण-कुरान का, गीता में है
सार।
भगवतगीता पाठ से, होते दूर विकार।
दो माताओं का मिले, जिसको प्यार
दुलार।
वो ही करता जगत में, दुष्टों का
संहार।।
दुर्योधन जब हो गया, सत्ता मद में
चूर।
तब मनमोहनश्याम ने, किया दर्प को दूर।।
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रविवार, 2 सितंबर 2018
दोहे "योगिराज का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-09-2018) को "योगिराज का जन्मदिन" (चर्चा अंक- 3083) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्री कृष्ण जन्मोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
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जवाब देंहटाएंi am also blogger
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सुन्दर भक्तिपूर्ण दोहे
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