जो स्वदेश का मान बढ़ाते,
वो ही दक्ष कहाते हैं। धरा सुसज्जित होती जिनसे, वो ही वृक्ष कहाते हैं। हरित क्रान्ति के संवाहक जो, जन-गण के रखवाले हैं,
आँगन-खेत, बाग-जंगल में,
लहराते मतवाले हैं,
जो प्राणों को देने वाली, मन्द समीर बहाते हैं। धरा सुसज्जित होती जिनसे, वो ही वृक्ष कहाते हैं।। फूल-मूल, फल-पत्ते जिनके, जीवन देने वाले हों,
वसुन्धरा का जो धानी,
शृंगार सजाने वाले हों,
जिनके कहने पर बादल,
नभ से पानी बरसाते हैं।
धरा सुसज्जित होती जिनसे,
वो ही वृक्ष कहाते हैं।। उपवन, आँगन, खेत, बाग में, आओ पेड़ लगायें हम,
जैविक खाद लगाकर,
माटी को उर्वरा बनायें हम,
पेड़ों की शीतल छाया में, जीव-जन्तु सुख पाते हैं। धरा सुसज्जित होती जिनसे, वो ही वृक्ष कहाते हैं।।
करती है फरियाद धरा,
हर रोज जगत के माली से,
हरा-भरा परिवेश बना दो,
कुदरत की हरियाली से,
जो जीवन में कदम-कदम पर,
काम हमारे आते हैं।
धरा सुसज्जित होती जिनसे,
वो ही वृक्ष कहाते हैं।। |
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पेड़-पौधों के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संदेश आदरणीय
जवाब देंहटाएंमन भावन प्रस्तुति
आभार
सादर
सुन्दर , सामयिक प्रस्तुति , बधाई आदरणीय
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