सज्जनता बेहोश हो गई, दुर्जनता पसरी आँगन में। कोयलिया खामोश हो गई, मैना चहक रहीं उपवन में।। |
गहने तारे, कपड़े फाड़े, लाज घूमती बदन उघाड़े, यौवन के बाजार लगे हैं, नग्न-नग्न शृंगार सजे हैं, काँटें बिखरे हैं कानन में। मैना चहक रहीं उपवन में।। |
मानवता की झोली खाली, दानवता की है दीवाली, चमन हुआ बेशर्म-मवाली, मदिरा में डूबा है माली, दम घुटता है आज वतन में। मैना चहक रहीं उपवन में।। |
शीतलता रवि ने फैलाई, पूनम ताप बढ़ाने आई, बेमौसम में बदली छाई, धरती पर फैली है काई, दशा देख दुख होता मन में। मैना चहक रहीं उपवन में।। |
सुख की खातिर पश्चिमवाले, आते थे होकर मतवाले, आज रीत ने पलटा खाया, हमने उल्टा पथ अपनाया, खोज रहे हम सुख को धन में। मैना चहक रहीं उपवन में।। |
शावक सिंह खिलाने वाले, श्वान पालते बालों वाले, बौने बने बड़े मनवाले, जो थे राह दिखाने वाले, भटक गये हैं बीहड-वन में। मैना चहक रहीं उपवन में।। |
बहुत बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१४-११-२०२२ ) को 'भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम'(चर्चा अंक -४६११) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह! सुंदर प्रतुति
जवाब देंहटाएंगहने तारे, कपड़े फाड़े,
जवाब देंहटाएंलाज घूमती बदन उघाड़े,
यौवन के बाजार लगे हैं,
नग्न-नग्न शृंगार सजे हैं,
काँटें बिखरे हैं कानन में।
वाह!!!
लाजवाब नवगीत ।
सच में आज की ऐसी दशा देखकर बहुत दुःख होता है। सब धन में ही सुख को खोज रहें हैं।
जवाब देंहटाएंयथार्थ पर सीधा प्रहार।
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन।