-- तन्त्र
ये खटक रहा है। सुदामा
भटक रहा है।। -- कंस
हो गये कृष्ण आज, मक्कारी
से चल रहा काज, भक्षक
बन बैठे यहाँ बाज, महिलाओं
की लुट रही लाज, तन्त्र
ये खटक रहा है। सुदामा
भटक रहा है।। -- जहाँ
कमाई हो हराम की लूट
वहाँ है राम नाम की, महफिल
सजती सिर्फ जाम की बोली
लगती जहाँ चाम की, तन्त्र
ये खटक रहा है। सुदामा
भटक रहा है।। -- जहरीली
बह रही गन्ध है, जनता
की आवाज मन्द है, कारागृह में राज़ बन्द है, गीतों
में अब नहीं छन्द है, तन्त्र
ये खटक रहा है। सुदामा
भटक रहा है।। -- |
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बुधवार, 16 नवंबर 2022
गीत "जहरीली बह रही गन्ध है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आदरणीय डॉ साहब सादर वंदन
जवाब देंहटाएंकंस हो गये कृष्ण आज,
मक्कारी से चल रहा काज,
सत वचन आदरणीय ...
बेहद दुखद, पर सच्चाई भी तो यही है
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 17 नवंबर 2022 को 'वो ही कुर्सी,वो ही घर...' (चर्चा अंक 4614) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
कटु यथार्थ
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब आदरणीय । कटु सत्य है यही ...।
जवाब देंहटाएंजहरीली बह रही गन्ध है,
जवाब देंहटाएंजनता की आवाज मन्द है,
कारागृह में राज़ बन्द है,
गीतों में अब नहीं छन्द है,
तन्त्र ये खटक रहा है।
सुदामा भटक रहा है।।
.. सच यही आज बहुतायत में देखने को मिल रहा है
बहुत अच्छी सामयिक चिंतन प्रस्तुति