धन-गुणा-भाग
से काम चलता नहीं, दिल
के जज्बात शामिल करो प्रीत में। सिर्फ
तुकबन्दियाँ काम आती नहीं, कुछ
अलग सा लिखो अब गजल-गीत में।। कुछ
कमी है नहीं साधना तो करो, नागरी-भारती
में भरा कोश है, छन्द-नवरस
अलंकार के भेद हैं, हास्य
के साथ इसमें करुण-जोश है, गीत
लगते अधूरे बिना राग के, बाँध
लो यत्न से साज-संगीत में। कुछ
अलग सा लिखो अब गजल-गीत में।। है
मिलावट बहुत ज्ञान के नाम पर, रीतियों-नीतियों
में सियासत भरी, रात
है प्रात सी दिन में तारे उगे, देख
बाजीगरी मौन कारीगरी, स्वाद
है अब नहीं दूध-नवनीत में कुछ
अलग सा लिखो अब गजल-गीत में।। चक्र
रुकता नहीं है समय का कभी, जिन्दगी
को हमेशा जियो शान से, मुश्किलों
से न घबराना ओ आदमी! कोष
घटता नहीं है कभी दान से, इक
अनोखा सा आनन्द मिलता हमें, हार
देती मजा जब कभी जीत में। कुछ
अलग सा लिखो अब गजल-गीत में।। प्यार
करना सरल है निभाना कठिन, मत
हँसी-खेल समझो कभी प्यार को, पान
करता गरल का स्वयंभू शिवा, थामता
गंग की वो अगम धार को कर्म
लिखता हमेशा से तकदीर को, जी
रहा है जगत आज तक रीत में। कुछ
अलग सा लिखो अब गजल-गीत में।। |
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शनिवार, 26 नवंबर 2022
गीत "अलग सा लिखो अब गजल-गीत में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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