-- पहले काम तमाम करें। फिर थोड़ा आराम करें।। -- आदम-हव्वा की बस्ती में, जीवन के हैं ढंग निराले। माना सबकुछ है दुनिया में, पर न मिलेगा बैठे-ठाले। नश्वर रूप सलोना पाकर, काहे का अभिमान करें। पहले काम तमाम करें। फिर थोड़ा आराम करें।। -- सागर है जलधाम कहाता, लेकिन स्वाद बहुत है खारा। प्यास पथिक की सदा बुझाती, कलकल-छलछल करती धारा। खुद खायें, औरौं को खिलाये, जमा न ज्यादा दाम करें। पहले काम तमाम करें। फिर थोड़ा आराम करें।। -- सोना उसको ही मिलता है, जिसने सोना त्याग दिया। उसका ही जग हो जाता है, जिसने भी अनुराग किया। सम्बन्धों को सदा निभायें, नहीं जात बदनाम करें। पहले काम तमाम करें। फिर थोड़ा आराम करें।। -- |
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मंगलवार, 16 मई 2023
गीत "जमा न ज्यादा दाम करें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सहज सीख देती रचना.
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने पहले काम फिर आराम बैठे-ठाले कुछ नहीं मिलता किसी को.. .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
बहुत सुन्दर सन्देश प्रदान करती रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही पहले काम फिर आराम अन्यथा खरगोश वाली स्थिति आ सकती है और जीतती हुई बाजी भी हाथ से निकल सकती है।
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख देती सुंदर रचना।