माता-दिवस माता शब्द की व्यापकता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुख-दर्द के समय अन्तर्मन से वाणी पर अपने आप आ जाता है- ‘हाय-मैया’ हे माँ ! मातृ-दिवस पर मैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ। आपने कभी विचार किया है कि माता के प्रति हमारी इतनी अगाध श्रद्धा और भक्ति क्यों है? इसका पता इसी बात से लग जाता है कि देवी स्वरूपा माता के दर्शनों के लिए पूरे वर्ष माँ के मन्दिरों में भारी भीड़ लगी रहती है। माता को ही जगत्-जननी का अमर पद प्राप्त है। आदि-शक्ति के रूप में वह हमारे मन में सरस्वती, पार्वती के रूप में विराजमान है। माता को विश्व में प्रथम गुरु का सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। ‘‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’’ -गीत- ------ जो सन्तानों को दुनिया के, सारे मर्म सिखाती है। ममता जिसके भीतर होती, माता वही कहाती है।। -- वेदों और पुराणों ने, माँ की महिमा को गाया है, माता के ऋण से कोई भी, उऋण नहीं हो पाया है, माता ही वाणी को, उच्चारण का भेद बताती है। ममता जिसके भीतर होती, माता वही कहाती है।। -- माँ के उर में जीवन का, व्याकरण समाया है, माता ने हमको धरती पर, चलना सिखलाया है, हमको भोजन जिमा, बाद में बचा-खुचा जो खाती है। ममता जिसके भीतर होती, माता वही कहाती है।। -- मुझे सुलाया सूखे में, सोई खुद गीले बिस्तर में, जगदम्बा जैसी होती है, माता तो सबके घर में, दुख आने पर सबको, माता याद बहुत आती है। ममता जिसके भीतर होती, माता वही कहाती है।। -- माँ से ही तो दुनिया में, सारे प्राणी आते हैं, रंग-रूप आकार सभी, माता के कारण पाते है, सन्तानों को सबसे ज्यादा, माँ की याद सताती है। ममता जिसके भीतर होती, माता वही कहाती है।। -- |
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रविवार, 7 मई 2023
गीत "माता-दिवस पर विशेष" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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