-- रसना से मिलती सौगातें अच्छी लगतीं प्यारी बातें -- दो से चार नयन जब होते आँखों में हो जाती बातें -- दोपाये-चौपाये करते अपनी न्यारी-न्यारी बातें -- हाव-भाव और भाव-भंगिमा करते कितनी सारी बातें -- पलकों पर जब बिन्दु छलकते हो जातीं दुखियारी बातें -- जब अधरों पर हँसी चहकती तब होती सुखकारी बातें -- जब बातों से बात निकलतीं टीका-टिप्पणीकारी बातें -- काली-अंधियारी रातों में होती विस्मयकारी बातें -- त्यौहारों की मधु-बेला में आशा की संचारी बातें -- बाग-बगीचे, वन-उपवन में आती हैं संसारी बातें -- अपनी बातें-उनकी बातें जीवन पर आधारी बातें -- बातें करना है लाचारी कितनी हैं बेचारी बातें -- |
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शुक्रवार, 19 मई 2023
ग़ज़ल "बातें ही बातें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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