-- सबका अपना-अपना होता, जीने का अन्दाज़ निराला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- भाषा-भूषा, प्रान्त-देश का, सम्प्रदाय का झगड़ा छोड़ो, जो सीधे-सच्चे मानव हैं, उनसे अपना नाता जोड़ो, नभ जब सूरज उगता है, लाता अपने साथ उजाला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- पल में तोला, पल में माशा, कभी हताशा कभी निराशा, मन है प्यासा पंछी जैसा, जिसकी बुझती नहीं पिपासा, कभी न भरता इसका प्याला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- पहन हंस सा रूप सलोना, लगता बिल्कुल सीधा-सादा, छल-फरेब के इस मूरत का, समझ न पाये लोग इरादा, विषधर तो विषधर ही होता, काला हो चाहे पनियाला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- “रूप” रंग का भूखा भँवरा, गुंजन करता उपवन-उपवन, सुमनों की सुगन्ध पाने को, डोल रहा है कानन-कानन, नटखट-निडर, रसिक सन्यासी, झूम रहा बनकर मतवाला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- |
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सोमवार, 29 मई 2023
गीत "सन्यासी बनकर मतवाला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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