“ग़ज़लियात-ए-रूप” की भूमिका” क्या ग़ज़ल सिर्फ उर्दू की जागीर है डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ मैंने सोशल साइटों पर देखा है कि डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी ने अब तक अनेकों पुस्तकों की भूमिकाएँ और समीक्षाएँ लिखी हैं और अब भी कई पुस्तकें समीक्षाएँ लिखने के लिए उनके पास कतार में हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि एक बड़े साहित्यकार की पुस्तक की भूमिका लिखने का मुझे अवसर मिला है। सर्वप्रथम मैं उनके प्रथम ग़ज़ल संग्रह ‘ग़ज़लियात-ए-रूप’ के प्रकाशन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ। मयंक जी से मेरी प्रथम भेंट सितारगंज में एक सम्मान समारोह में हुई थी। मैं जब ‘ग़ज़लियात-ए-रूप’ की भूमिका लिख रही थी तो मेरे मन में ग़ालिब, मीर और निदा फाज़ली का ख्याल आ रहा था। जिन्होंने आम आदमी की पीड़ा को अनुभव करते हुए अपनी कलम चलाई थी। मुझे ग़ज़लकार डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ भी उन्हीं की श्रेणी के लगे। ग़ज़ल में प्रेमी-प्रेमिका की बातचीत के अतिरिक्त समाज में जो घट रहा है उसको भी अपनें शब्दों में ढालना होता है। जिसे ग़ज़लकार ने बाखूबी अपनी ग़ज़लों में उतारा है। उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले के दुष्यन्त कुमार का नाम एक सिद्ध ग़ज़लकार के रूप में आदर के साथ लिया जाता है। यह संयोग ही कहा जायेगा कि डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ भी मूलतः बिजनौर जनपद के ही हैं। जिनकी शायरी में मुझे इंसानी ज़ज़्बात के सभी रंग नजर आये। प्रेम, मुहब्बत, बेचैनी, ख्वाहिश, माँ, रिश्ते-नाते, तीज-त्यौहार, दरवेश, शहर-गाँव, इंसानियत, संगीत, प्रकृति, बदलाव, सभ्यता आदि सभी विषयों का समावेश मयंक जी ने अपने ग़ज़ल संग्रह में किया है। उनकी लेखनी में अनुभव के साथ-साथ जीवन की भावरूपी सच्चाइयाँ, अदब और ज़िन्दादिली भी है। जब वह रिश्तों का जिक्र करते हैं तो उसके उतार-चढ़ाव और नज़ाकतों को भी बयान करना नहीं भूलते। प्रेम में सराबोर उनकी इस ग़ज़ल की बानगी देखिए- ‘‘नैन मटकाते हैं, इज़हार नहीं करते हैं सिर हिलाते हैं वो इनकार नहीं करते हैं...’’ समाज के नक़ाबी चेहरे का भण्डापफोड़ करते हुए एक गजल में वो लिखते हैं- ‘‘युग के साथ-साथ, सारे हथियार बदल जाते हैं नौका खेने वाले, खेवनहार बदल जाते हैं।। -- जप-तप, ध्यान-योग, केबल, टीवी, सीडी करते हैं पुरुष और महिलाओं के संसार बदल जाते हैं -- माता-पिता तरसते रहते, अपनापन पाने को, चार दिनों में बेटों के, घर-बार बदल जाते हैं’’ सियासतदानों की झूठी हमदर्दी पर उनका यह अशआर देखिए- ‘‘सीमा पे अपने सैनिक दिन-रात मर रहे हैं कायर बने विधता करने कमाल निकले’’ मौजूदा हालात को बयान करती हुई मजदूर शीर्षक से लिखी गयी उनकी ग़ज़ल का एक मतला और एक शेर देखिए- ‘‘वो मजे में चूर हैं, बस इसलिए मग़रूर हैं हम मजे से दूर हैं, बस इसलिए मजदूर हैं -- आज भी बच्चे हमारे, बीनते कचरा यहाँ, किन्तु उनके लाल, मस्ती के लिए मशहूर हैं’’ ‘दो जून की रोटी’ नामक गजल में उन्होंने एक मजदूर की बेबसी को बयान करते हुए लिखा है- ‘‘जरूरत बढ़ गयीं इतनी, हुई है ज़िन्दगी खोटी बहुत मुश्किल जुटाना है, यहाँ दो जून की रोटी -- नहीं ईंधन मयस्सर है, हुई है गैस भी महँगी, पकेगी किस तरह बोलो, यहाँ दो जून की रोटी’’ मयंक जी शब्दों के जादूगर हैं उन्होंने ग़ज़ल पर ग़ज़ल लिखते हुए कहा है- ‘‘ज़ज़्बात के बिन, ग़ज़ल हो गयी क्या बिना दिल के पिघले, ग़ज़ल हो गयी क्या -- हुनर की जरूरत, न सीरत से मतलब महज ‘रूप’ से ही, ग़ज़ल हो गयी क्या’’ ग़ज़ल में हिन्दी-उर्दू की शब्दावली पर करारा प्रहार करते हुए लिखा है- ‘‘अपनी भाषा में हमने लिखे शब्द जब ख़ामियाँ वो हमारी गिनाने लगे -- क्या ग़ज़ल सिर्फ उर्दू की जागीर है इसको फिरकों में क्यों बाँट खाने लगे’’ अपनी छोटी बहर की ग़ज़ल में कश्मीर के हालात पर चिन्ता व्यक्त करते हुए ग़ज़लकार लिखता है- ‘‘छूट रहा अपराधी है ये कैसी आजादी है -- सिसक रही है केशर-क्यारी शासक तो उन्मादी है’’ अन्त में इतना ही कहना चाहूँगी कि ‘ग़ज़लियात-ए-रूप’ ग़ज़लसंग्रह को पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि ग़ज़लकार डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ ने भाषिक सौन्दर्य के साथ ग़ज़ल की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है। मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक ‘ग़ज़िलयात-ए-रूप’ को अतीत के प्रतीकों को वर्तमान परिपेक्ष्य में पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे और यह मज़मुआ समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा। डॉ. राजविन्दर कौर हिन्दी विभागाध्यक्ष, राजकीय महाविद्यालय सितारगंज (उत्तराखण्ड) |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 10 जून 2023
“डॉ. राजविन्दर कौर द्वारा ग़ज़लियात-ए-रूप” की भूमिका”
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।