-- जब बालक की पीठ पर, लदा दुआ हो भार पढ़ने के सपने कहाँ, फिर होंगे साकार।। -- चमत्कार के फेर में, छन्द हो गये क्ल्ष्टि। होते नहीं विशिष्ट वो, जो होते हैं श्लिष्ट।। -- पूरब से होता शुरू, प्रतिदिन जीवन सत्र। दिनचर्चा के भेजता, सूरज लिखकर पत्र।। -- टंकण करने में लगा, काम जरूरी छोड़। गुणा-भाग के फेर में, भूल गया है जोड़।। -- जिसके सिर पर ताज हो, होता उसका नाम। जोड़-तोड़ से चल रहे, अब तो सबके काम।। -- मुखपोथी पर बढ़ रहे, आभासी अनुबन्ध। सोच-समझ कर कीजिए, लोगों से सम्बन्ध।। -- आ जाते हैं जब कभी, पीड़ा के आयाम। अधरों पर तब थिरकता, परमपिता का नाम।। -- नहीं हमेशा फूलता, चोरी का व्यापार। चोरी के बल पर नहीं, होता बेड़ा पार।। -- श्रम करके भी श्रमिक तो, रहा मजे से दूर। खाता नहीं हराम का, जो होता मजदूर।। -- टाँग अड़ाने के लिए, टाँगों का उपयोग। अच्छे लोगों पर सदा, लगते हैं अभियोग।। -- खाते-पीते खूब है, मगर न करते काम। अफसर-जनसेवक हुए, मानो अक्षरधाम।। -- जिनका केवल रह गया, रिश्वतखोरी काम। वो जनसेवक कर रहे, सत्ता को बदनाम।। -- कृषक हमारे देश में, करते चीख-पुकार। तेल डालकर कान में, बैठी है सरकार।। -- |
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मंगलवार, 13 जून 2023
दोहे "भूल गया है जोड़ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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