-- रंग-रंगीली इस दुनिया में, झंझावात बहुत गहरे हैं। कीचड़ वाले तालाबों में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।। -- पल-दो पल का होता यौवन, नहीं पता कितना है जीवन, जीवन की आपाधापी में, झंझावात बहुत उभरे हैं। कीचड़ वाले तालाबों में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।। -- सागर का पानी खारा है, नदिया की मीठी धारा है, बंजारों का नहीं ठिकाना, एक जगह वो कब ठहरे हैं। कीचड़ वाले तालाबों में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।। -- शासक बने आज व्यापारी, प्रीत-रीत में है मक्कारी, छिपे हुए उजले लिबास में, काले दाग़ बहुत गहरे हैं। कीचड़ वाले तालाबों में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।। -- मानवता का “रूप” घिनौना, हुआ आदमी का का कद बौना, दूध-दही के भण्डारों पर, बिल्ले ही देते पहरे हैं। कीचड़ वाले तालाबों में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।। -- |
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गुरुवार, 1 अगस्त 2024
गीत "बिल्ले ही देते पहरे हैं" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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