-- चाँद दिखाई दिया दूज का, फिर से रात हुई उजियाली। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- धर सोलह सिंगार धरा ने, फिर से अपना रूप निखारा। सजनी ने साजन की खातिर, सावन में तन-बदन सँवारा। वन-कानन में आज मयूरी, नाच रही होकर मतवाली। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- आँगन के कट गये पेड़ सब, पड़े हुए झूले घर-घर में। झूल रहीं खुश हो बालाएँ, गूँज रहे मल्हार नगर में। मस्त फुहारें लेकर आयी, नभ पर छाई बदरी काली।। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- उपवन में कोमल कलियों की, भीग रही है चूनर धानी। खेतों में लहराते बिरुए, आसमान का पीते पानी। पुरवय्या के झोंखे आते, बल खाती पेड़ों की डाली।। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- घेवर-फेनी और जलेबी, अच्छी लगती चौमासे में। लेकिन अब त्यौहार हमारे, हैं मँहगाई के फाँसे में। खास आदमी मजे उड़ाते, जेब आम की बिल्कुल खाली।। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- |
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बुधवार, 7 अगस्त 2024
"तीज आ गई हरियाली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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