सम्बन्धों के चक्रव्यूह में, सीख रहा हूँ दुनियादारी। जब पारंगत हो जाऊँगा, तब बन जाऊँगा व्यापारी।। खुदगर्जी के महासिऩ्धु में, कैसे सुथरा कहलाऊँगा? पीने का पानी सागर से, गागर में कैसे पाऊँगा? बिना परिश्रम, बिना कर्म के, कदम-कदम पर लड़ना होगा। बाधाओं को दूर हटाकर, पथ पर आगे बढ़ना होगा। जीवन का अस्तित्व बचाना, मेरे जीवन की लाचारी। जब पारंगत हो जाऊँगा, तब बन जाऊँगा व्यापारी।। माँ ने जन्म दिया है मुझको बापू ने चलना बतलाया। जन्मभूमि ने मेरे मन में, देशप्रेम का भाव जगाया। अपने पथदर्शक गुरुओं का, सदा रहूँगा मैं आभारी। जब पारंगत हो जाऊँगा, तब बन जाऊँगा व्यापारी।। |
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रविवार, 18 दिसंबर 2011
"सीख रहा हूँ दुनियादारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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शास्त्री जी, बहुत सुंदर रचना ...बधाई ''''
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
जहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
रख छूरी जनता के,अफसर मस्ती के लाली में,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलिमे click करे
aaj aapki kavitayen seedhe dil ko choo rahi hain aapko to abhi bahut lamba safar karna hai.bahut kuch abhi seekhna hai aapse.agli post koi khilkhilaati hui daaliye.
जवाब देंहटाएंis damdaar kavita ke liye badhaai.
मेरे जीवन की लाचारी।
जवाब देंहटाएंजब पारंगत हो जाऊँगा,
तब बन जाऊँगा व्यापारी।।
Shastri ji,
bahut sundar rachana, sundar bhav,badhai sweekar karen.
आप कवि बने रहें, संवेदना बची रहेगी।
जवाब देंहटाएंमानव का मानव से कैसा सुन्दर नाता है,
जवाब देंहटाएंऐसे में रिश्तों का व्यापार कहाँ चल पाता है..
बहुत सुन्दर रचना...
ह्रदय वेदना का वर्णन है
जवाब देंहटाएंउच्चारण शब्दों के भारी
जीवन सरल, विचार गहन हों
ना हो कहने मे लाचारी
क्यों पारंगत होना है अब
नहीं बनो तुम अब व्यापारी...
मेरी भाषा मेरा अनुभव
मैं हूँ सदा सदा आभारी....
विजय
सम्बंधों का चक्रव्यूह ना
जवाब देंहटाएंतोड़ सका है कभी अनाड़ी
और न व्यापारी बन पाया,
प्रेम नगर का प्रेम पुजारी.
विसंगतियों का चक्रव्यूह और जीवन की लाचारी जो भी करा दे, कम है.
jeevan ki visangatiyoun ka sunder chitran.......
जवाब देंहटाएंआप कभी व्यापारी नही बन सकते इतना संवेदनशील मन लेकर । सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमेरे जीवन की लाचारी।
जवाब देंहटाएंजब पारंगत हो जाऊँगा,
तब बन जाऊँगा व्यापारी।…………मानव मन की वेदना का सुन्दर व सटीक चित्रण किया है।
जब पारंगत हो जाऊँगा,
जवाब देंहटाएंतब बन जाऊँगा व्यापारी।।
बिल्कुल सही ,दुनियादारी सीखकर व्यापारी ही बना जा सकता है
सुंदर रचना
बढिया रचना।
जवाब देंहटाएंदुनियादारी भी बहुत ज़रुरी है .. अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदुनियादारी की अच्छी सीख
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सीख देता हुआ सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंसटीक चित्रण.
जवाब देंहटाएंजब पारंगत हो जाऊँगा,
जवाब देंहटाएंतब बन जाऊँगा व्यापारी।।...badhiyaa
vyapaar hee hai zindagee aajkal...!!!
जवाब देंहटाएंसम्बन्धों के चक्रव्यूह में,
जवाब देंहटाएंसीख रहा हूँ दुनियादारी।
सटीक बात की सुन्दर प्रस्तुति...
माँ ने जन्म दिया है मुझको
जवाब देंहटाएंबापू ने चलना बतलाया।
जन्मभूमि ने मेरे मन में,
देशप्रेम का भाव जगाया।
अपने पथदर्शक गुरुओं का,
सदा रहूँगा मैं आभारी।
जब पारंगत हो जाऊँगा,
तब बन जाऊँगा व्यापारी।।
इस शानदार काव्यमय प्रस्तुति के लिए बधाई
जीवन के झंझावातों से,
जवाब देंहटाएंकदम-कदम पर लड़ना होगा।
बाधाओं को दूर हटाकर,
पथ पर आगे बढ़ना होगा।
जीवन का अस्तित्व बचाना,
मेरे जीवन की लाचारी।
sundar prastuti ..
सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंजब पारंगत हो जाऊँगा,
जवाब देंहटाएंतब बन जाऊँगा व्यापारी।।
बहुत सुन्दर रचना है सर....
सादर...
Very very Nice post our team like it thanks for sharing
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachana hai...
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