![]() मानव दानव बन बैठा है, जग के झंझावातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।। होड़ लगी आगे बढ़ने की, मची हुई आपा-धापी, मुख में राम बगल में चाकू, मनवा है कितना पापी, दिवस-रैन उलझा रहता है, घातों में प्रतिघातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।। जीने का अन्दाज जगत में, कितना नया निराला है, ठोकर पर ठोकर खाकर भी, खुद को नही संभाला है, ज्ञान-पुंज से ध्यान हटाकर, लिपटा गन्दी बातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।। मित्र, पड़ोसी, और भाई, भाई के शोणित का प्यासा, भूल चुके हैं सीधी-सादी, सम्बन्धों की परिभाषा। विष के पादप उगे बाग में, जहर भरा है नातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।। एक चमन में रहते-सहते, जटिल-कुटिल मतभेद हुए, बाँट लिया गुलशन को, लेकिन दूर न मन के भेद हुए, खेल रहे हैं ग्राहक बनकर, दुष्ट-बणिक के हाथों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।। |
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बहुत सुन्दर शास्त्री जी....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना...कड़वे सच को बयाँ करती रचना.
सादर
अनु
gahan abhivyakti ...
जवाब देंहटाएंमानव दानव बन बैठा है, जग के झंझावातों में।
जवाब देंहटाएंदिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
सत्य को उजागर करती सार्थक अभिव्यक्ति।
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबढ़िया |
बधाई गुरु जी ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गहन प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंवाह मेरे खींची फोटू यहाँ शोभामान हो रही है...
जवाब देंहटाएंhttp://deepakmystical.blogspot.in/2012/01/blog-post_25.html
मित्र, पड़ोसी, और भाई, भाई के शोणित का प्यासा,
जवाब देंहटाएंभूल चुके हैं सीधी-सादी, सम्बन्धों की परिभाषा।
विष के पादप उगे बाग में, जहर भरा है नातों में।
दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
.एक कटु सत्य का यथार्थ चित्रण ..
दीपक बाबा जी आपका यह चित्र मुझे गूगल सर्च से मिला था। मुझे अच्छा लगा। आपने बहुत सुन्दर चित्र खींचा है।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ!
ज़िंदगी के कटु सत्य का बहुत सुन्दर चित्रण...
जवाब देंहटाएंजीने का अंदाज नया है ,आया नया जमाना है
जवाब देंहटाएंभूल गए सब रिश्ते नाते,लेकिन हमे निभाना है
MY RECENT POST...:चाय....
सटीक !
जवाब देंहटाएंसूरज चंदा को मनाया जाये
क्यों ना पहले के जैसे
काम पर लगाया जाये
महौल को विटामिन बी
का टानिक पिलाया जाये।
जीने का अन्दाज सिखाती रणभेरी कविता..
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही बढि़या।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना... वाह
जवाब देंहटाएंजीवन के यथार्थ को चित्रित करती रचना।
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