यह बालरचना गतवर्ष 29 जुलाई को लिखी थी। आज पुनः आप सबसे साझा कर रहा हूँ! ![]() अब हरियाली तीज आ रही, मम्मी मैं झूलूँगी झूला। देख फुहारों को बारिश की, मेरा मन खुशियों से फूला।। कई पुरानी भद्दी साड़ी, बहुत आपके पास पड़ी हैं। इतने दिन से इन पर ही तो, मम्मी मेरी नजर गड़ी हैं।। |
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झूला झूलने का मन कर गया ...
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल कविता ..
सादर !
उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंवाह, भैया का मन भी ललचायेगा..
जवाब देंहटाएंबढ़िया! :)
जवाब देंहटाएंबहूत सुंदर बाल कविता...
जवाब देंहटाएं:-)
वाह बहुत प्यारी रचना ..!!
जवाब देंहटाएंझूले झूला मगन मन, यह हरियाली तीज ।
जवाब देंहटाएंसावन की छाई घटा, अंतस जाए भीज ।
अंतस जाए भीज, नहीं है प्रांजल भूला ।
हरी भरी सी डाल, डाल कर झूला-झूला ।
दादी लेती झूल, झूलती मैया चाची ।
धीरे धीरे खूब, झुलाए प्यारी प्राची ।।
हरियाली तीज आई, पड़ गया पेड़ पर झूला
जवाब देंहटाएंबहना को बैठाकर भईया, झूला रहा है झूला,,,,,,
बहुत सुंदर प्रस्तुती,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
प्यारी कविता.....
जवाब देंहटाएंवाह ! बचपन याद आ गया !!
जवाब देंहटाएंनाइस!
जवाब देंहटाएंअभी भी भूले नहीं वो बचपन के झूले....
जवाब देंहटाएंजब भी देखी बौर आम की...याद बहुत आए वो झूले...!
सादर !!!