नहीं मिलता यहाँ पर, अब हुनर तालीमख़ानों में। पढ़ाई बिक रही अब तो, धड़ल्ले से दुकानों में।। कहें हम दास्तां किससे, सुनेगा कौन जनता की? दबी आवाज तूती की, यहाँ नक्कारखानों में। मिलेगा किस तरह पानी, फसल कैसे उगेगी अब? जमी हैं मैल की पर्तें, नदी के सब मुहानों में। यहाँ कच्चे घरों का ख्याल, बोलो कौन रक्खेगा? हुआ जब कैद हो मालिक, गगनचुम्बी मकानों में। हमारी सल्तनत में अब, थिरकती मौत है हरदम, नहीं महफूज है कोई, बने पुख़्ता ठिकानों में। शुरू से ही जमीं के वास्ते, ये जंग होती हैं, चले अब शूरमा लड़ने, लड़ाई आसमानों में। मगर को देखकर, डर से दिये हैं वोट मीनों ने, डकैतों ने लिखाया नाम, अपना कद्रदानों में। पढ़े लिक्खों के सिर पर, कौन अब दस्तार बाँधेगा? सियासत जब सिमट कर, रह गयी हो ख़ानदानों में। |
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शुक्रवार, 20 जुलाई 2012
"सियासत ख़ानदानों में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंसादर !
शास्त्री जी उम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहृदय के हर कोने को झिजोड कर रखदिया है इन पंक्तियों ने
हमारी सल्तनत में अब, थिरकती मौत है हरदम,
नहीं महफूज है कोई, बने पुख़्ता ठिकानों में।
शुरू से ही जमीं के वास्ते, ये जंग होती हैं,
चले अब शूरमा लड़ने, लड़ाई आसमानों में।
मगर को देखकर, डर से दिये हैं वोट मीनों ने,
डकैतों ने लिखाया नाम, अपना कद्रदानों में।
बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंयही तो हकीकत है ||
कुनैन की तरह...
जवाब देंहटाएंकविता की मिठास में लपेट कर सच्चाई की कडवी गोली... :)
पढ़े लिक्खों के सिर पर, कौन अब दस्तार बाँधेगा?
जवाब देंहटाएंसियासत जब सिमट कर, रह गयी हो ख़ानदानों में।
Bahut khoob !
सच्चाई को प्रस्तुत करती सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंयही इतिहास विदित होगा..
जवाब देंहटाएंहकीकत बयां करती उत्कृष्ठ रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
शुरू से ही जमीं के वास्ते, ये जंग होती हैं,
जवाब देंहटाएंचले अब शूरमा लड़ने, लड़ाई आसमानों में।
मगर को देखकर, डर से दिये हैं वोट मीनों ने,
डकैतों ने लिखाया नाम, अपना कद्रदानों में।
बेहद खूबसूरत , आभार .
सादर
ऐसे नबंरो पर कॉल ना करे. पढ़ें और शेयर
हकीकत बयां करती सटीक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत ....
जवाब देंहटाएंठीक बात है..!
जवाब देंहटाएंमगर को देखकर, डर से दिये हैं वोट मीनों ने,
जवाब देंहटाएंडकैतों ने लिखा
या नाम, अपना कद्रदानों में।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति शिखर पर पहुँच रही है व्यंजना .
पढ़े लिक्खों के सिर पर, कौन अब दस्तार बाँधेगा?
जवाब देंहटाएंसियासत जब सिमट कर, रह गयी हो ख़ानदानों में।
....बहुत सटीक प्रस्तुति...
पढ़े लिक्खों के सिर पर, कौन अब दस्तार बाँधेगा?
जवाब देंहटाएंसियासत जब सिमट कर, रह गयी हो ख़ानदानों में।
वाह !
यहाँ कच्चे घरों का ख्याल, बोलो कौन रक्खेगा?
जवाब देंहटाएंहुआ जब कैद हो मालिक, गगनचुम्बी मकानों में।
क्या बात है !!
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है जनाब !!
जवाब देंहटाएंपढ़े लिक्खों के सिर पर, कौन अब दस्तार बाँधेगा?
सियासत जब सिमट कर, रह गयी हो ख़ानदानों में।
वाह बहुत खूब !!
Yahaan Mayassar Nahin Hunar Taalimkhaanon Men..,
जवाब देंहटाएंTaalimaat Bik Rahin Ab Dhadhadhalle Se Dukaanon Men..,
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