मेरी पुरानी डायरी से एक ग़ज़ल ![]() मन हुआ अनमना बात ही बात में। खो गया मैं कहाँ जाने ज़ज्बात में।। दिल की दौलत लुटाई बड़े चाव से, उसने लूटा खजाना मुलाकात में। जाल पर जाल वो फेंकते ही गये, कितना जादू था उनके ख़यालात में। देर से ही सही सच उजागर हुआ, सिर्फ छल-छद्म था उनकी सौगात में। “रूप” पर उनके दिल था दिवाना हुआ, मुझको धोखा मिला चाँदनी रात में। |
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देर से ही सही सच उजागर हुआ,
जवाब देंहटाएंसिर्फ छल-छद्म था उनकी सौगात में।
रूमानियत लिए है ये रचना गुजिस्ता दिनों की .बढ़िया प्रस्तुति .
बड़े नाज़ुक टाइम में धोखा मिला है।
जवाब देंहटाएंउम्दा काव्य .
बहुत बढ़िया ग़ज़ल दाद कबूल कीजिये
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक ने हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंरूप देख दीवाना हुआ, फिसला मेरा दिल
हटाएंजाते जाते थम्हा गई, हजारों का ये बिल,,,,,,,
बहुत बढ़िया प्रस्तुती, सुंदर गजल ,,,,,
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“रूप” पर उनके दिल था दिवाना हुआ,
जवाब देंहटाएंमुझको धोखा मिला चाँदनी रात में।
''रूप'' का सुन्दर प्रयोग. चाँदनी रात में ही तो दिल धोखा खाता है. सुन्दर गज़ल, बधाई.
बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना, कई बार पढ़ने का मन किया..
जवाब देंहटाएंchandni raat mein hee dhokhe milte hain guru jee!
जवाब देंहटाएंजाल पर जाल वो फेंकते ही गये,
जवाब देंहटाएंकितना जादू था उनके ख़यालात में।
देर से ही सही सच उजागर हुआ,
सिर्फ छल-छद्म था उनकी सौगात में।
बहुत सुन्दर !
“रूप” पर उनके दिल था दिवाना हुआ,
जवाब देंहटाएंमुझको धोखा मिला चाँदनी रात में।
bahut sundar..