कवि और कविता
स्व. मोहन चन्द्र जोशी
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संसार के प्रत्यक व्यक्ति के मन में हर समय कुछ न कुछ चलता रहता है, लेकिन जो अपने हृदय के
भावों को कलमबद्ध कर लेता है वह कवियों की कतार में शामिल हो जाता है। जीवन के
उतार-चढ़ाव और अनुभूतियों का प्राकट्य ही तो कविता है। सच पूछा जाये तो हम अपनी
अनुभूतियों को ही शब्दों के रूप में अंकित करते हैं। कविता किसी छन्द की मोहताज
कभी नहीं रही है, बल्कि हृदय के भावों
की एक मंजुलमाला है जिसे हम लोग शब्दों के मोतियों से पिरोते हैं।
गिरीश चन्द्र जोशी ने अपने पिता की इच्छा को पूर्ण करते हुए उनकी कविताओं
को कृति के रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। कहा जाता है कि समय से
पहले कुछ भी सम्भव नहीं होता, “देर आयद-दुरुस्त आयद” इस कार्य में चाहे भले
ही विलम्ब हुआ हो लेकिन स्व. मोहन चन्द्र जोशी जी की आत्मा जहाँ भी होंगी, जरूर प्रसन्न होकर अपे
शुभाशीषों की वर्षा करती होंगी कि उनके पुत्र ने उनकी अभिलाषा को मूर्तरूप दिया
है।
स्व. मोहन चन्द्र जोशी जी की विविध आयामी कृति “कवि और कविता” एक ऐसा काव्य संग्रह
है जिसमें एक कोमल अहसास और अनुभूति का दिग्दर्शन होता है जो पाठकों के
हृदय पर अपनी छाप जरूर अंकित करेगा। कवि की दृष्टि में
कविता क्या है? इसका उल्लेख पहली ही
रचना में “कवि और कविता” शीर्षक से किया गया
है-
“कवि मन की तुम सजग
कल्पना, कवि सरिता तुम
कल-कल गान।
कवि पिक की तुम मधुर कूक हो, कवि अलि तुम मर्मर गुंजान।।
-- तुम मदिरा की हाला
हो तुम,कवि मतवाला तुम
प्याला।
कवि साकी तुम भरी सुराही, कवि शाला तुम मधुबाला।।
“तिरंगे की शान” शीर्षक से कवि ने आज
से दशकों पूर्व जो सन्देश दिया था वह वर्तमान में भी समीचीन है देखिए इस कविता
का कुछ अंश-
“कोटि-कोटि जन मुक्त
हृदय से, आज इसी के गुण
गाता।
तीन लोक में यश फैलाने, आज तिरंगा लहराता।। -
बिछड़े बन्धु सशंकित हैं जो, आज हुए हमसे न्यारे।-
निज विशाल हिय खोल बुलाता, निर्भय फिर आओ प्यारे।।
सम विभाग दिखला समदर्शी, निज उदारता जतलाता।
तीन लोक में यश फैलाने, आज तिरंगा लहराता।।“
"कवि और कविता” काव्य संग्रह में एक
रचना “महाराजा दिलीप की गौ
सेवा” के नाम से भी है। मैं
यदि इस रचना की तुलना सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की अमर रचना “राम की शक्ति पूजा से
करूँ तो विडम्बना नहीं होगी। स्व. मोहन चन्द्र जोशी जी की यह रचना वास्तव में एक
कालजयी रचना है। जिसमें कवि ने अतीत को वर्तमान के लिए एक शिक्षा के रूप में
प्रस्तुत किया है-
कवि की कल्पनाओ के अनुरूप उनके सुपुत्र गिरीश चन्द्र जोशी जी ने ऐतिहासिक
पृष्ठभूमि की रचनाओं “भीष्म-प्रतिज्ञा”, “फूत्कार”, “वीर माता कर्मभूमि”, “दाना दुश्मन”, जैसी कालजयी रचनाओं को
पुस्तक में यथोचित स्थान दिया है।
“है बात अति प्राचीन, कोई सुन न यह अचरज करे।
थे दिन न तब वेतन लिए, गुरु शिष्य की सेवा करे।।
आश्रम पहुँच अति दीन हो, गुरु के चरम पर सिर धरा।
पूजन उचित करके ग्रहण, गुरुदत्त शुचि आसन करा।। --
आगे नृपति तव वंश में, होंगे प्रतापी वीर वर।।
चाहो करो जैसा उचित, सन्तुष्ट हूँ मैं आप पर।
लखि नन्दिनी और नृपति को, आते हुए घर के लिए।
गौ-ग्रास लेकर चल पड़ी, झट धेनु स्वागत के लिए।
गुरू को धरोहर सौंप उनकी, नृपति पहुँचे महल में।
भोजन किया फिर प्रेम से, अति हर्ष पाया युगल ने।।
इस भाँति सेवा नन्दिनी की, नृपति करते नेम से।
यद्यपि यही क्रम रोज था, पर नित नये ही प्रेम से।।
नृप मक्षिका से भी बचाते, देह जिसकी थे अभी।
शार्दूल नख उनमें गड़े, क्या देख सकते थे कभी।।
“छापा पड़ गया” ग़ज़ल की भी बानगी
देखिए-
"हो जान देते तुच्छ सी, इस गाय के बदले अरे।
आता नहीं क्या ध्यान तुमको, निज प्रिया का भी हरे।। "
कवि ने एक ओर जहाँ गम्भीर विषयों पर विशद रचनाकारी की है वहीं कुछ उम्दा
और छोटी-छोटी ग़ज़लों की भी रचना की है। “सस्ता बारूद” में कवि लिखता है-
“जिन्सें सभी महँगी
हुईं, बारूद सस्ता रह
गया।
लोक तन्त्र यही तो है, नेता कोई ये कह गया।।“
“बचाने चले थे टैक्स
वे, छापा ही पड़ गया।
अंगुली बचा रहै थे
पर पहुँचा ही कट गया।।“
“सम्भालो यारों” में कवि कहता है-
“लो सुराही गयी, अब जाम सम्भालो
यारो।
इस रौनके बुझी को, फिर से सम्भालो
यारो।।“
पर्वतीय परिवेश में ज़िन्दग़ी को परिभाषित करते हुए कवि कहता है-
“जाड़ों की लम्बी
रात है, तन्हा ये
ज़िन्दग़ी।
कैसे कटेगी रात औ कैसे ये ज़िन्दग़ी।।
मुझको जहाँ की क्या ग़रज़, इस ऊँच-नीच से,
अपनी तो ढल चुकी है, ग़ज़ल में ही ज़िन्दग़ी।।“
एक और ग़ज़ल “भुलाया नहीं जाता” को भी देखिए-
“एहसान तेरा मुझसे
भुलाया नहीं जाता।
सोहबत का तेरी लुत्फ भुलाया नहीं जाता।।“
“आसपास से” में कवि लिखता है-
“कहती है महक गुज़रे
हैं वो कहीं पास से।
तस्वीर भी खोई मिली उसके ही पास से।।
इसी मिज़ाज़ की एक और ग़ज़ल भी देखिए-
“दीदार रुख का जबसे कराया है आपने।
होशो-हवास दिल का उड़ाया है आपने।।“
हीरक हार, स्वारथ लागि करें सब
प्रीति, शराबी का गीत (पपीहे
से सवाल और सका जवाब), शून्य का आविष्कार, घन काले, तिकड़में जयते, जीवन ज्योति, रात बाकी, आदि शक्ति प्रकृति, बहार है, अन्तहीन, नामकरण, रिसर्च, सही नाम, गागर, आधी रात का गीत, आशा की अभिलाषा आदि
बहुआयामी रचनाओं का बेजोड़ संगम है श्रद्धेय स्व. मोहन चन्द्र जोशी का काव्य
संग्रह “कवि और कविता”।
“कवि और कविता” काव्य संग्रह में कौन
काम का, नज़र का कमाल, बहार, चाँद सा मुखड़ा, सजायी गयी हो, दिल लगाना छोड़ दे, दिल, दर्दे दिल, हाथ हिलाते चले गये, क्या करूँ, अब तो जाग लो, बात पर बात, होते क्यों, ज़माने से, पाक मोहब्बत, वक्त की कलकल, भटक गये, क्यों हँसी आई रही, हसीन, दवा पी, दास्ताने दिल, मरीज-ए-इश्क, आपकी कसम, क्या कहें, इन्तजार, साक़ी, कह नहीं सकता, बेरुखी, रोने के लिए, जगह, कोई और है, प्यार का रूप आदि तीन
दर्जन से अधिक अलग-अलग मिज़ज़ाज की उम्दा ग़ज़लों का समावेश है। जिनको पढ़कर
पाठकवृन्द को एक सुखद अनुभूति होगी।
इस कृति को आद्योपान्त आत्मसात करके मैंने पाया कि विद्वान कवि ने कविता, ग़ज़ल और मुक्तक की
सभी विशेषताओं को संग-साथ लेकरजो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है। मुझे
पूरा विश्वास है कि पाठक जोशी जी के साहित्य से अवश्य लाभान्वित होंगे। साथ ही
काव्य जगत में यह कृति मील का पत्थर साबित होगी और समीक्षकों की दृष्टि से भी
उपादेय सिद्ध होगी।
पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर कवि की लेखनी को नमन करते हुए मैं अपनी
श्रद्धा के सुमन उनके चरणों में समर्पित करता हूँ।
दिनांकः 24 अप्रैल, 2016 (रविवार)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" (कवि एवं साहित्यकार)
टनकपुर रोड, खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर,
उत्तराखण्ड (भारत) - 262308.
Mobiles: 09997996437,
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