जो स्रजन कर
रही दुनिया का, वो आदि-शक्ति तो नारी है।
फिर अबला
जैसे शब्दों की, क्यों बनी हुई अधिकारी है।।
प्रश्न-चिह्न
हैं बहुत, इन्हें अब हमको शीघ्र हटाना है।
नारी के
खोये अस्तित्वों को, फिर भूतल पर लाना है।।
सम्बन्ध
तलाश रहे हैं जो, वो केवल भावों को देखें।
अनुबन्ध
तलाश रहे हैं जो, वो दिल के घावों को देखें।।
दानवता की
चक्की में, जब-जब मानवता पिसती है।
लोभी पण्डों
की टोली जब, नकली चन्दन को घिसती है।।
क्यों शेर
सभी बिल्ले बन जाते, जब निर्वाचन आता है।
छिप जातो
खूनीं पंजे सब, जब-जब निर्वाचन जाता
है।।
क्यों पूरी
सजा नही मिलती, इन आतंकी मतवालों को।
क्यों
समयचक्र चलता जाता है, अपनी वक्र कुचालों को।।
जनता के सरल
सवालों का, नेता के पास जवाब नही।
जन-गण के
खून-पसीने का, भाषण में कहीं हिसाब
नहीं।।
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सोमवार, 4 अप्रैल 2016
कविता "नेता के पास जवाब नही..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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