दीवाली
पर आओ मिलकर,
नन्हें
दीप जलायें हम
घर-आँगन
को रंगोली से,
मिलकर
खूब सजायें हम
आओ
स्वच्छता के नारे को
दुनिया
में साकार करें
चीन
देश की चीजों को
हम
कभी नहीं स्वीकार करें
छोड़
साज-संगीत विदेशी
देशी
साज बजायें हम
घर-आँगन
को रंगोली से,
मिलकर
खूब सजायें हम
कंकरीट
की खेती से
धरती
को हमें बचाना है
खेतों
में श्रम करके हमको
गेहूँ-धान
उगाना है
अपने
खेतों की मेढ़ों पर
आओ
वृक्ष लगायें हम
घर-आँगन
को रंगोली से,
मिलकर
खूब सजायें हम
मजहब
के ठेकेदारों की
बन्द
दुकानें करनी हैं
भाईचारे
की भारत में
नयी
नींव अब धरनी हैं
लालन-पालन
करने वाली
माँ
की महिमा गायें हम
घर-आँगन
को रंगोली से,
मिलकर
खूब सजायें हम
असली
घर में नकली पौधों
का,
अब कोई काम न हो
कुटिया
में महलों में अपने
कहीं
छलकते जाम न हो
बन्द
करो मयखाने सारे
शासन
को चेतायें हम
घर-आँगन
को रंगोली से,
मिलकर
खूब सजायें हम
देव
संस्कति को अपनाओ
रक्ष
सभ्यता को छोड़ो
राम और रहमान एक हैं
उनसे
ही नाता जोड़ो
भेद-भाव,
अलगाववाद का
वातावरण
मिटायें हम
घर-आँगन
को रंगोली से,
मिलकर
खूब सजायें हम
|
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रविवार, 15 अक्तूबर 2017
गीत "नन्हें दीप जलायें हम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक सामयिक रचना
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