मित्रों!
पिछले वर्ष 16 अक्तूबर, 2016 को
निम्न गीत लिखा था,
परन्तु इस गीत की कुछ पंक्तियों में
थोड़ा बदलाव करके
बहुत से लोगों ने इस गीत को
अपने नाम से यू-ट्यूब पर
लगा दिया है।
देश के धन को देश में रखना,
बहा न देना नाली में।
मिट्टी के ही दिये जलाना,
अबकी बार दिवाली में।।
बने जो अपनी माटी से
वो दीप बिकें बाजारों में,
भरी हुई है वैज्ञानिकता.
अपने सब त्यौहारों में,
राष्ट्र हितों का गला घोंटकर
छेद न करना थाली में।
मिट्टी के ही दिये जलाना,
अबकी बार दिवाली में।।
त्यौहारों पर अब गरीब की,
जेब कभी ना खाली हो।
झिलमिल नन्हें दीप जलें जब,
काली नहीं दिवाली हो।
देश की सीमा रहे सुरक्षित
चूक न हो रखवाली में।
मिट्टी के ही दिये जलाना,
अबकी बार दिवाली में।।
रहे देश की दौलत
अपने ही लोगों की झोली में।
मिलता है आनन्द हमेशा,
अपनी ही रंगोली में।
योगदान है सबका होता
जनता की खुशहाली में।
मिट्टी के ही दिये जलाना,
अबकी बार दिवाली में।।
वस्तु स्वदेशी अपनाने का
आओ हम सब प्रण कर लें,
अपने उत्पादन से अपना,
दामन खुशियों से भर लें।
गले मिलें सब लोग देश के,
होली, ईद-दिवाली में।
मिट्टी के ही दिये जलाना,
अबकी बार दिवाली में।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |

जवाब देंहटाएंपत्थर के घर में रह के पत्थर हुआ इंसान।
चमक-दमक के शहर में क्या मिट्टी की पहचान ।
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसटीक और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
सामयिक संदेश और सार्थक आह्वान।
प्रेरक प्रस्तुति।