घरवाली से भी अधिक, साली से है प्यार।।
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अपनी बहनों से नहीं, करते प्यार-अपार।
किन्तु सालियों से करें, प्यारभरी मनुहार।।
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जीजा-साली का बहुत, होता नाता खास।
जिनके साली हैं नहीं, वो हैं बहुत उदास।।
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साली से अनुराग है, सालों से ससुराल।
साली जीजा का रखे, सबसे ज्यादा ख्याल।।
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साली जीजा के लिए, होती है अनुकूल। लगती उसकी गालियाँ, जीजा जी को फूल।। -- साली के बिन तो लगे, सूना सब संसार। सम्बन्धों का सालियाँ, होती हैं आधार।। --
छोटी हो चाहे बड़ी, साली रस की खान।
इसीलिए तो सब करें, साली का गुणगान।।
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साली है ऐसा सुमन, जिसमें है मकरन्द।
साली की तो गन्ध से, मिल जाता आनन्द।।
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कभी रहे इकरार तो, कभी रहे इनकार। जीजा साली में चले, मधुर-मधुर तकरार।। --
जब करती हैं सालियाँ, खुलकर हँसी मजाक।
घरवाली यह देखकर, रह जाती आवाक।।
-- आधी घरवाली नहीं, कहना इसको मित्र। रखना हरदम चाहिए, अपना साफ चरित्र।। |
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शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017
दोहे "साली रस की खान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएं@रखना हरदम चाहिए, आपना साफ चरित्र...............कुछ रिश्ते नाहक बदनाम कर दिए गए हैं
जवाब देंहटाएंजब हम अन्य महत्वपूर्ण संबंधों को ताक पर रख किसी एक के आगे पीछे मंडराएगे,तो वह रिश्ता बदनाम होते देर न लगेगा।
जवाब देंहटाएं