दीवाली
पर शारदे, करना यह उपकार।
जीवनभर
सुनता रहूँ, वीणा की झंकार।।
जलें
सभी के नीड़ में, माटी के जब दीप।
दीवाली
पर देवता, रहते तभी समीप।।
दीप
जलाने के लिए, हो बाती में तेल।
तब
ही तम की नाक में, डालें दीप नकेल।।
ब्रह्मा
जी ने रच दिये, अलग-अलग आकार।
किन्तु
एक ही रूप के, रचता पात्र कुम्हार।।
स्वस्थ
रहे सब जगत में, दाता दो वरदान।
बरखा-गरमी-शीत
में, दुखी न हो इंसान।।
ज्ञान
बाँटने से मनुज, होता नहीं विपन्न।
विद्या
धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न।।
मात
शारदे को कभी, मत बिसराना मित्र।
मेधावी
मेधा करे, उन्नत करे चरित्र।।
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गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017
दोहे "दीवाली पर देवता, रहते तभी समीप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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