मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।
जिसकी घाटी में महका हुआ है पवन,
मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।
जिसके उत्तर में अविचल हिमालय खड़ा,
और दक्षिण में फैला है सागर बड़ा.
नीर से सींचती गंगा-यमुना चमन।
मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।।
वेद, कुरआन-बाइबिल का पैगाम है,
ज़िन्दगी प्यार का दूसरा नाम है,
कामना है यही हो जगत में अमन।
मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।।
सिंह के दाँत गिनता, जहाँ पर भरत,
धन्य आजाद हैं और विस्मिल-भगत,
प्राण आहूत करके किया था हवन।
मुझको प्राणों से प्यारा है अपना वतन।।
यह धरा देवताओं की जननी रही,
धर्मनिरपेक्ष दुनिया में है ये मही,
अपने भारत को करता हूँ शत्-शत् नमन।
मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।।
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सोमवार, 9 अक्तूबर 2017
प्रकाशन-शैलसूत्र "प्राणों से प्यारा वो अपना वतन"
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