आज
अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास।
जब
तक माँ जीवित रही, रखती थी उपवास।।
वो
घर स्वर्ग समान है, जिसमें माँ का वास।
अब
मेरा माँ के बिना, मन है बहुत उदास।।
बचपन
मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर
अब मुझे, करने हैं सब काज।।
तारतम्य
टूटा हुआ, उलझ गये हैं तार।
कहाँ
मिलेगा अब मुझे, माता जैसा प्यार।।
सूना
घर का द्वार है, सूना सब संसार।
माता
के बिन लग रहे, फीके सब त्यौहार।।
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गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017
दोहे "फीके सब त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंमां की कमी कभी पूरी नहीं की जा सकती.
जवाब देंहटाएंरजा सिरसवी की एक गजल की कुछ पंक्तियाँ हैं.....
मौत के आगोश में जब थक के सो जाती है मां
तब रजा थोड़ा सुकूं पाती है मां
रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमें और दर्द से चिल्लाती है मां
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंघर में खुशियों के माहौल में, तीज-त्यौहारों में अपने बिछुड़े बहुत याद आते हैं
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना
माँ का कोई विकल्प नहीं.!!
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