जीवनपथ पर ओ मनुज, चलना सीधी चाल।
जीवनभर टिकता नहीं, फोकट का धन-माल।।
गण-गणना पर है टिकी, सब दोहों की डोर।।
छन्दों में करना नहीं, तुकबन्दी कमजोर।
चार दिनों की ज़िन्दगी, काहे का अभिमान।
धरा यहीं रह जायगा, धन के साथ गुमान।।
जिनका सरल सुभाव है, उनका होता मान।
लम्पट, क्रोधी-कुटिल का, नहीं काम का ज्ञान।।
धन के सब स्वामी बनो, मत कहलाओ दास।
जो बन जाते दास हैं, रहते वही उदास।।
कर्म बनाता भाग्य को, यह जीवन-आधार।
कर्तव्यों के साथ में, मिल जाता अधिकार।।
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मंगलवार, 24 अप्रैल 2018
दोहे "चलना सीधी चाल।" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-04-2018) को ) "चलना सीधी चाल।" (चर्चा अंक-2951) पर होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी