जगतनियन्ता है गुरू, हम सब उसके छात्र।
रटा-रटाया बोलते, रंगमंच के पात्र।।
ओज-तेज से युक्त ही, कहलाता
अमिताभ।
लोग उठाते हैं सदा, भोलेपन
का लाभ।।
केवल मतलब के लिए, जहाँ मधुर हों बात।
जग में ऐसे मीत ही, पहुँचाते आघात।।
लेने के ही नाम पर, फैले जिनके हाथ।
उनसे मत आशा करो, जो हैं स्वयं अनाथ।
सम्बन्धों के नाम पर, हों कोरे अनुबन्ध।
उनसे दुआ-सलाम तक, रहने दो सम्बन्ध।।
याद नहीं रहता जिन्हें, योगदान-अनुपात।
ऐसे लोगों को कभी, देना मत खैरात।।
अपने वचनों के नहीं, होते जो पाबन्द।
उनसे तो कर दीजिए, मेल-जोल भी बन्द।।
मन में मैल भरा हुआ, मुख पर हो मुसकान।
उनको कभी न बाँटिए, अपना निर्मल ज्ञान।।
सूरत भले कुरूप हो, सीरत में हो रूप।
सुबह-शाम लगती सदा, सबको अच्छी धूप।।
जिसके भरा दिमाग में, अधकचरा हो ज्ञान।
उसके मन में तो भरा, होता है अभिमान।।
मन में जिससे प्रीत हो, उसका पकड़ो हाथ।
साथी का मझधार में, नहीं छोड़ना साथ।।
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मंगलवार, 3 अप्रैल 2018
विविध दोहे "रहने दो सम्बन्ध" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-04-2018) को ) "रहने दो सम्बन्ध" (चर्चा अंक-2930) पर होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत अच्छे दोहे. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएं